VIVEK KUMAR PANDEY 25 Jun 2023 कविताएँ दुःखद अधूरे ख़्वाब, आधे -अधूरे, 6776 0 Hindi :: हिंदी
तब क्या होगा? ये सोचा मैंने सोचा बार-बार। मैं तो चलना चाहता था उनके साथ, पर शायद..... उनको ही मिल गए आशियाने कई। जिसमे सजाएंगे वो अपना संसार मेरी पहुंच के पार। मगर..... मैं तब भी था उनके साथ और हमेशा रहूंगा भी। उनको ही मिल गए राही नए, बदल गई उनकी मंजिले, पर मैं अभी भी खड़ा हूं वहीं जहां से छोड़ कर गए थे वो। और उसी मोड़ पर खड़ा रहकर करता रहूंगा एक अंतहीन इंतजार।। मेरी पहुंच के बहुत पार।। बस तुम्हारा...