Onkar Verma 01 Jan 2025 कविताएँ अन्य रिश्तों से अब मन भरने लगा है ,जब मन दुखी व् निराश हो तो यह कविता सकून देगी 11328 0 Hindi :: हिंदी
मन भरने लगा है नाजाने क्यो जीने से डर लगने लगा है........ अपने हों या बेगाने सब के अलग - अलग हैं पैमाने किस - किस का माप समझूं मैं अनाड़ी जब हर मर्तबान खाली दिखने लगा है.... मन भरने लगा है नाजाने क्यों जीने से डर लगने लगा है............. हर चीज़ छूटने लगी है रिश्तों की माला टूटने लगी है किस - किस को संभालूँ मैं अनाड़ी माला का हर मोती बिखरने लगा है......... मन भरने लगा है नाजाने क्यों जीने से डर लगने लगा है............ लडता ही रहा हूं जीवन भर मुश्किलों भरी रही है हर डगर गिरता रहा............उठता रहा कब तक यूं सम्भल पायूँगा मैं अनाड़ी बड़ा मुश्किल अब यह..... अंतिम सफ़र लगने लगा है................. मन भरने लगा है नाजाने क्यों जीने से डर लगने लगा है............ ख़ामोश रहने लगा है मन बढ़ती जा रही है सीने की जलन बिन आग ही सब जलने लगा है............... मन भरने लगा है नाजाने क्यों जीने से डर लगने लगा है........................