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पहिए की हंसी

VIJAYPAL 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग हंसी मज़ाक, Funny Poem in Hindi, Mjakiya Kavita 92871 1 5 Hindi :: हिंदी

पहिए की हंसी 
पहिए तेरी हंसी मैं ना समझ पाया। 
आमोद या परिहास की बताया क्यों नहीं? 
हर रोज अतीव हंसना।
शोभायमान नहीं।। 

पहिया कहता है -
 मैं हंसता नहीं, दूरी को निगलता हूं। 
बने हुए अवरोधों पर लंबा फिसलता हूं।। 
कीचड़ में स्नान, गहरे गर्त डरता हूं।
आ ना जाए नूकिल, प्रार्थना यह करता हूं।। 
पथ पर मृत गिलहरी, दोष यह मानता हूं।
प्राण हरने वाले यमराज को जानता हूं।। 

कवि कहता है -
रे हां,,, 
3500 ई पूर्व सोपोटामिया इतिहास है। 
काठ में जन्म हुआ , यह अजीब बात है।। 
आज लोहे पर चढा रबड़। 
कितना विकास है?।। 
 मानव से तेरा आत्मा जैसा साथ है।। 

पहिया कहता है-
हां,आवश्यकता अविष्कार की जननी जो है।
भले इंसान ने निर्जीव को जान दी है।
शायद उसने, विज्ञान से सीख ली है।।

कवि कहता है-
रे विनम्रता पूर्ण। 
इस आविष्कार को परिणाम है। 
तेरा यह अतीव हंसना।
शोभायमान है,शोभायमान है,,,,,,,,,,,

 कविता का सार-
                       इस  कविता में लेखक को लगता है कि जब वह किसी पहिए को देखता है तो उसे वह हंसता हुआ प्रतीत होता है। इसलिए वह पूछता है कि क्या तुम मेरा मजाक बना कर हंस रहे हो या खुशी से हंस रहे हो तब पहिया कहता है कि मैं हंसता नहीं हूं दूरी को तय करता हूं इस प्रकार वह अपने बारे में बताते हुए लेखक की सोच को बदलता है और लेखक भी उसकी महिमा करते हुए उसके विकास के बारे में बताता है। 

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