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मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया

Vikram Bahadur 03 May 2024 कविताएँ प्यार-महोब्बत 2033 0 Hindi :: हिंदी

मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया 
हँसता था।कभी 
आज खुद को गुमसुम है पाया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया 
देखा खुद को जब 
लगा मुकदर ने भी मेरा साथ नहीं है निभाया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया
चल पड़ा मैं मोहब्बत की इस रहा में 
खुद को दिल के हाथों मजबूर है पाया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया
तुझ पर विश्वास करूँ या अपनी इन आँखों पर 
जिसने मुझे तेरा सच है। दिखया 
विश्वास नहीं होता मुझे खुद पर 
ये धोखा मैंने तुझसे है पाया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया
रोया मैं  घुट-घुट कर 
ये चेहरा मैं क्यों नहीं भुला पाया 
संभाल लेता हुँ।
खुद को फिर भी तेरी इन यादों ने 
मुझे ना जाने क्यों है सताया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया
चाहता हुँ भूल जाऊँ तुझे 
पर ये दिल तुझे ना है भुला पाया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया
आते है। वो लम्हें बार-बार 
जिन्हें मैंने तेरे संग है बिताया 
ना जाने ये कौन-सी है।सजा 
जो खुदा मेरे हिस्से में है आया 
मोहब्बत की रहा में खुद को अकेला है पाया

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