Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

माँ की दुआ- बेटे की कुशलता की उम्मीद

DINESH KUMAR KEER 20 Jun 2023 कहानियाँ अन्य 9531 0 Hindi :: हिंदी

माँ की दुआ

"अम्मा! आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है।"
डाकिया साहब ने अम्मा को देखते अपनी मोटरसाइकिल रोक दी। अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई... 
"बेटा! पहले जरा बात करवा दो।"
अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देखा लेकिन उसने अम्मा को टालना चाहा... 
"अम्मा! इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि, हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।"
डाकिए ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे ठिठोरी करने लगी... 
"बेटा! बस थोड़ी देर की ही तो बात है।"
"अम्मा आप मुझ से हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!"
यह कहते हुए वह डाकिया रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा... 
"लो अम्मा! बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना, पैसे कटते हैं।"
उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल - चाल लेती अम्मा मिनट भर बात कर ही संतुष्ट हो गई। उनके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।
"पूरे हजार रुपए हैं अम्मा!"
यह कहते हुए उस डाकिया ने सौ - सौ के दस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए।
रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने उसे ठहरने का इशारा किया... 
"अब क्या हुआ अम्मा?"
"यह सौ रुपए रख लो बेटा!" 
"क्यों अम्मा?" उसे आश्चर्य हुआ।
"हर महीने रुपए पहुंचाने के साथ - साथ तुम मेरे बेटे से मेरी बात भी करवा देते हो, कुछ तो खर्चा होता होगा ना!"
"अरे नहीं अम्मा! रहने दीजिए।"
वह लाख मना करता रहा लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहां से वापस जाने को मुड़ गया। 
अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों दुआऐं देती अपनी देहलीज़ के भीतर चली गई।
वह डाकिया अभी कुछ कदम ही वहां से आगे बढ़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा... 
उसने पीछे मुड़कर देखा तो उस कस्बे में उसके जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था।
मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले शिवलाल को सामने पाकर वह हैरान हुआ... 
"भाई साहब आप यहां कैसे? आप तो अभी अपनी दुकान पर होते हैं ना?"
"मैं यहां किसी से मिलने आया था! लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।" 
शिवलाल की निगाहें उस डाकिए के चेहरे पर टिक गई... 
"जी पूछिए भाई साहब!"
"भाई! आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?"
"मैंने क्या किया है भाई साहब?" 
शिवलाल के सवालिया निगाहों का सामना करता वह डाकिया तनिक घबरा गया।
"हर महीने आप इस अम्मा को भी अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए भी रुपए देते हैं! ऐसा क्यों?"
शिवलाल का सवाल सुनकर डाकिया थोड़ी देर के लिए सक-पका गया!
मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो लेकिन अगले ही पल उसने सफाई दी... 
"मैं रुपए इन्हें नहीं! अपनी अम्मा को देता हूंँ।"

"मैं समझा नहीं?"
उस डाकिया की बात सुनकर शिवलाल हैरान हुआ लेकिन डाकिया आगे बताने लगा...
"इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा के लिए हजार रुपए का मनीऑर्डर भेजता था लेकिन एक दिन मनीऑर्डर की जगह इनके बेटे के एक दोस्त की चिट्ठी अम्मा के नाम आई थी।"
उस डाकिए की बात सुनते शिवलाल को जिज्ञासा हुई..
"कैसे चिट्ठी? क्या लिखा था उस चिट्ठी में?"
"संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई! अब वह नहीं रहा।"
"फिर क्या हुआ भाई?" 
शिवलाल की जिज्ञासा दुगनी हो गई लेकिन डाकिए ने अपनी बात पूरी की... 
"हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई! मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका मनीआर्डर ले आता हूंँ।"
"लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?"
"मैं भी हर महीने हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को! लेकिन अब मेरी अम्मा भी कहां रही।" यह कहते हुए उस डाकिया की आंखें भर आई।
हर महीने उससे रुपए ले अम्मा से उनका बेटा बनकर बात करने वाला शिवलाल उस डाकिया का एक अजनबी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

लड़का: शुक्र है भगवान का इस दिन का तो मे कब से इंतजार कर रहा था। लड़की : तो अब मे जाऊ? लड़का : नही बिल्कुल नही। लड़की : क्या तुम मुझस read more >>
Join Us: