Pinky Kumari 15 Jan 2025 आलेख अन्य 3546 0 Hindi :: हिंदी
मैंने इस लेख में हर विषय पर बात कि है। तो कृपया यह ना सोंचे के में बार - बार बदल क्यों रही हूँ जब जिन्दगी और लोग सताने लगे तो समझ जाना अब कुछ बड़ा करने का समय आगया है। मुझे भी और आपको भी पता नहीं क्या बड़ा करने का समय आगया है। पर जो भी रास्ता दिखे उस पर चलना शुरू करदो जीवन में उतार चढ़ाव आयेंगे पर हमें डट कर सामना करना है। यही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। सफलता पाने में समय लगता है। जीवन एक किमत मांगती है। उस किमत को पूरा करते - करते समय लगता है। तब जाके जीवन को एक सही दिशा मिल पाती है। और यह सफलता किसी एक वर्ग कि नहीं होती उस सफलता में लड़किया भी शामिल है। जब भगवान ने हमें बनाने में भेद भाव नहीं रखा तो हम बटे हुए क्यों है। सफलता हो या असफलता जीवन के हर हिस्से पर सब बराबर के हक दार है। जिन्दगी आसान नहीं होती जीना बल्की आसान बनाना पड़ता है। और उसके लिए हमें खुब मेहन्त करनी होगी जब घर में खाने दाने ना हो तो त्यौहार , परम्पराए, नियम कायदे कानून सारी धरी की धरी रह जाती है। हम इंसानों ने ही इस धरती पर रहने के लिए जीवन चलाने के लिए अलग - अलग नियम बनायें है। जब भगवान ने हमें बनाने में कोई नियम नहीं रखा तो हम कौन होते है। भगवान के नाम पर नियम बनाने वाले जैसे कि में बात करती हूँ जब हम मरते है। या जन्म लते है। तो उसमें कोई दिन वार तीथी शुभ अशुभ भगवान देखते है। क्या । उन्हें इतना पता कि किस इंसान का समय पूरा हो गया है। और किसका समय आने वाला है। वो उसी आधार पर अपना कार्य करते है। तो हम कौन है। भगवान को नियमो पर चलाने वाले भगवान के इतने ही भक्त हो तो इस पृथ्वी पर भगवान द्वारा बनाई गई इस धरती को और इस प्रकृति को क्यों खाये जा रहें है। =) हम कि हम इंसान अपने स्वार्थ के लिए पेड़ पौधों का खत्म किये जा रहें है। उन्हें काटते जा रहें है। =) दूसरा उनके द्वारा बनई गई नदिया जल झरखे , समुद्र आदि को हम गन्दा और प्रदूसित किये जा रहें है। उसमें माजुद जलिय जिवों को हम इंसानों ने खत्म कर दिया है। यह कैसी धार्मिकता है। =) उनके द्वारा बनाएं गएँ पहाड़, बड़ी चटाने , कोयला , लोहा ,पितल ,ताम्बा आदि को हम अपने स्वार्थ के लिए खत्म किये जा रहें है। यह कहाँ कि इंसानियत है। =) धरती पर हो या जलिय जीव हो पक्क्षी हो हमने किसी भी जीवों को नहीं छोड़ा हमने उनको भी मारकर खाना शुरू कर दिया है। और भगवान के नाम पर बलि दिये जा रहें है। यह कैसी मानवता है। और कैसी भक्ती है। मै मानती हूँ कि जिवन जिना मुश्किल है। पर हम मुश्किलों कि आड़ में हमने इस पूरी धरती को एक विनाश कि और लेकर जा रहें है। और इसमें अच्छे बुरे सभी शामिल है। कुछ चन्द लोगों कि कोशिशों से कुछ नहीं होने वाला जब तक इस देश के लिडर साथ नहीं देंगे आगे नहीं आयेंगे तब तक कुछ भी सम्भव नहीं है। कुछ करने भी जाओंगे तो भी आप नहीं कर वाओंगे क्योंकि अच्छाई किसी को हजम नहीं होती सत्य है। हमने अपने चारों और परम्पराओं और पाखण्डों कि एक ऐसी लाईन खिच रखी है। जिससे हम चाहकर भी बहार नहीं आ सकते तो हम इस धरती के लिए क्या कर पायेंगे क्योंकि हमें ऐसा लगता है। कि यहीं परम्परायें ही है। जो इस धरती को बचा रखी है। गलत है। जब सांस लेने के लिए ऑक्सिजन हवा नहीं होंगी तो लियाना अपने पाखण्डों को और नियमों को आप सोच रहें होंगे कि में ऐसी बाते क्यों कर रही हूँ क्योंकि हम कहीं ना कहीं बेहोंश है और बेसुद हो चुके है। कुछ तो हो चुके है। और कुछ को कर दिया गया है। कब जागेंगे पता नहीं जब मोत सिर पर होगी तब चिलाना कि हमें बचालो तब लियाना अपनी रूड़ी परम्पराओं को और कहना कि मेंने तो इंतने का परशाद चढ़ाया था । में उल्ठे पाव चला था । उस बाबा ने यह बोला था कि किसी काले कुते को तेल कि रोटी खिलाना और यह हो जाऐगा जब मोत सामने होंगी ना तब इन बातों का और इन रूड़ी परम्पराओं का कुछ नहीं होने वाला अच्छा मनते इतनी ही काम करती है। तो अपनी मुत्यु को रोक कर बताओं और बोलों कि भगवान इतना पशाद चढ़ा दुगा बस मुझे एक और बार जिने का मौका देदों आप यही सोच रहें होंगे कि में बार - बार मृत्यू को बिच में क्यों ले आती एक मुत्यु ही सत्य है। बाकी सब झुठ और दिखावा पाखण्ड बस अपनी मुत्यु को याद रखों और अपने द्वारा किये जा रहें कर्मों का हिस्साब रखों क्योंकि आगे यही साथ जाने वाले है। धरती पर सबको बराबर जिने का हक है। चाहें इंसान हो या जीव जन्तु सभी को सुकुन से जिने दे क्योंकि इस धरती पर मौजुद हर वस्तु अपने आपमें सजीव है और कुछ ना कुछ कहती है। उसको समझों तभी हम लोगों के दुःख दुर्द को समझ सकते तभी हम प्रकृति पर दया कर सकते है। समझों समझने कि बात है। सिर्फ शादी कर लेना तिन चार बच्चें पैदा कर लेना यही जीवन नहीं है। यह तो अपने आपको सजा देने के बरा - बर है। वो भी खुशी - खुशी इस सजा में पता नहीं चलता कि कौन दुःखी है। और सुख का नाम ही मत लो सुखी तो कोई नहीं रहता शादी करके चाहें महिला वर्ग हो या पुर्ष वर्ग है। सबकों बरार सजा मिलती है। और यह सजा कोई भगवान ने नहीं दी है। इस सजा के जिम्मेदार सिर्फ हम खुद होते है। तो भगवान को तो दोष ही मत देना कि यह क्या कर दिया पुछा था भगवान से कि शादी करू या नहीं तो बस भुगतो यह कोई नियम है। ऐसी कोई परम्परा है। पूछा है अपने आप से नहीं सुना है। बस शादी करनी जरूरी होती है। जहा से सुनी है ना वहा जाकर देखों कि वो सुखी है। जैब में एक पैसा नहीं जिन्दगी कि लगी पड़ी है। और इस बिच एक और नई मुसिबत पालेते हों ऐसे बनों कि पहले खुद के पेट भरने कि व्यवस्था करों फिर सोचना शादी करने कि क्योंकि तुम्हारे पिछे आने वाली हो या आने वाला वो एक इंसान है। कोई मिट्टी का खिलौना नहीं जिसे लाकर रख दिया हो पहले शादी का मतलब समझों और शादी हो भी गई और छुट भी गई हो तो इतना काबित बनों कि उसके छुड़ने का कोई गम ना हो मसत रहों और रहने दो भगवान मुझे शादी से बचाएं क्योंकि मुझमें किसी और को झेलने कि हिमत नहीं है। धन्यवाद शायद यह लेख आपको जरूर पसंद आया होंगा मेंने इस लेख में कुछ अलग - अलग विषयों पर बात कि है। तो समझ लेना कृपया करके ✍️✍️🙏🙏
Collge Pas Student Student Library Wizard Awards 2015 Award Gold Medal And Cash...