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सड़क सुरक्षा कितना प्रासंगिक?

krishna choudhary 30 Mar 2023 आलेख समाजिक 19467 0 Hindi :: हिंदी

सड़क सुरक्षा कितना प्रासंगिक?

      मनुष्य मूलतः एक यायावर प्राणी है. यात्रा उसके जीवन की धूरी है. वह चाहे-अनचाहे बहुधा अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा लघु व दीर्घ यात्राओं में व्यतीत करता है. यात्रा का उद्देश्य संभवतः जीवन के भौतिक, व्यवाहरिक व पराभौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होता है. यही कारण है कि यात्रा का महत्त्व मानव सभ्यता व संस्कृति के विकास के इतिहास में नृप-निर्माता की रही है. हम सभी जानते हैं कि लंबी समुद्री यात्राओं के परिणामस्वरूप ही अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, जैसे महाद्वीपों का संपर्क शेष विश्व से हो पाया. अलबेरुनी, मार्कोपोलो, इब्नबतूता, सर टोमस रो, केप्टन हॉकिन्स, फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग, मनूची आदि की यात्रावृत्तांत से ही इनके  देशवासियों ने इनके द्वारा भ्रमण किये गए राष्ट्रों के बारे में अतिमहत्वपूर्ण जानकारियाँ हासिल की. फलस्वरूप कालक्रम में, उन राष्ट्रों से अतिमहत्वपूर्ण व्यापारिक व सांस्कृतिक संबंध स्थापित हुए. अतः,  यह निर्विवादित रूप से  कहा जा सकता है कि यात्रा मनुष्य के सृजनात्मक व औत्सौक्य वृत्ति का  परिचायक है. इसलिए मानव कल्याण हेतु कृत संकल्प राष्ट्र, शासकीय व अशासकीय संस्थाओं का यह परम कर्तव्य बन जाता है कि वह सहज, सुरक्षित, सुलभ व अबाध यातायात की व्यवस्था सुनिश्चित करे. एक ऐसी व्यववस्था जो पूर्ण सुरक्षित हो तथा अहर्निश व अबाध रूप से परिचालित रहे. 
		आधुनिक समय में यातायात के मुख्यतः तीन साधन हैं:-(i) थल मार्ग(ii) जल मार्ग व (iii) वायु मार्ग. स्थलीय प्राणी होने की वजह से मनुष्य के बीच थल मार्ग, यातायात हेतु सर्वप्रिय मार्ग है. एक आम मनुष्य अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इसी मार्ग से यात्रा करता है. स्थल मार्ग से यात्रा के दो प्रमुख साधन हैं(i) सड़क मार्ग एवं (ii) रेल मार्ग.
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग आज भी यातायात का एक प्रमुख साधन है. मानव एवं वस्तुओं का सर्वाधिक परिवहन इसी मार्ग द्वारा होता है. भारत में  सड़कों की कुल लम्बाई 60 लाख किमी है. यह विशाल नेटवर्क प्रतिदिन कुल यात्री यातायात का 90% तथा माल यातायात  का लगभग 65% परिवहन करता है. एक बृहत् जनसंख्या वाला देश होने के नाते यहाँ खपत का पैमाना बड़ा है. अतः इस खपत की पूर्ति हेतु आवश्यक व उपभोक्तावादी वस्तुओं की बड़ी मांग है. चूँकि सड़क मार्ग आज भी यहाँ यातायात का सर्वप्रिय साधन है, अतः सड़कों पर अत्यधिक दवाब पड़ना लाजिमी है. इस दवाब को कम करने के लिए दीर्घकालिक व लघुकालिक उपायों को अपनाए जाने की जरुरत है. दीर्घकालिक उपायों में वैकल्पिक राजमार्गों का निर्माण अथवा उनका विस्तारीकरण, नए फ्लाईओवर का निर्माण, मोटरवाहन नीति का प्रभावी क्रियान्वयन आदि तो लघुकालिक उपायों में कुशल यातायात प्रबंधन, यातायात साक्षरता का प्रचार-प्रसार आदि जैसे उपाय शामिल हैं. अन्यथा की स्थिति में ऐसे कारक भावी दुर्घटना के बीज बन जाते हैं . यद्यपि दीर्घकालिक उपायों यथा नूतन राजमार्गों का निर्माण, उपलब्ध राष्ट्रीय/राज्यीय राजमार्गों का विस्तारीकरण आदि एक व्यय व समय साध्य प्रक्रिया है. किन्तु, इसके पश्चात भी कुशल यातायात प्रबंधन के बिना इन सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं को टाला नही जा सकता. अतः, यह अपरिहार्य हो जाता है कि यातायात प्रबंधन के उपायों को प्रभावी व कुशल बनाया जाय ताकि यात्रा अपने वांछित उद्देश्य को शुभता से पूरा कर सके. किसी आशंका व अनहोनी की संभावना इसमें नगण्य रहे, शुन्य रहे. 
यातायात प्रबंधन की आवश्यकता क्यों?
सड़क दुर्घटना विकासशील देशों में नागरिकों की असमय मौत का एक प्रमुख कारण है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष 13.5 लाख लोगों की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो जाती है. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस दुर्घटना में सभी वय के व्यक्ति शामिल हैं. किन्तु, सर्वाधिक हताहत वर्ग राष्ट्र की कार्यशील जनसंख्या अर्थात  18-60  वर्ष के उम्र के लोगों का  है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वैश्विक स्थिति रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 से वैश्विक सड़क दुर्घटना में होनेवाली प्रति 11  मृत्यु में से 1 मृत्यु भारतीय सड़कों पर होता है. जहाँ तक सड़क दुर्घटनाओं का प्रश्न है तो सड़क दुर्घटनायें भारतीय सड़कों से अधिक विकसित एवं विकाशसील देशों के सड़कों पर होता है. किन्तु, सड़क दुर्घटनाओं में होनेवाली मौतों के मामले में भारत सबसे आगे है.
		वर्ष 2019  के 'भारत में सड़क दुर्घटना' रिपोर्ट के अनुसार कुल 449002  सड़क दुर्घटनाओं में से 151113 में मृत्यु तथा 451361 लोगों को सड़क दुर्घटना में चोटें आई. दुर्घटना में जान जाने की जोखिम का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रति 100 दुर्घटना में 1.3 व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हुए. इन दुर्घटनाओं में होने वाले मौतों के कारणों की पड़ताल करें तो हैरान कर देनेवाले तथ्य सामने आते हैं. दुर्घटनाजन्य मौतों का प्रमुख कारण तेजगति रहा. वर्ष 2019 में कुल 1.02 लाख मौतों का कारण तेज गति ही रही. लगभग 45000 मामलों में हेमलेट ना पहनना दुर्घटनाजन्य मृत्यु का कारण रहा. अर्थात् कुल मृत्यु का 30% हेलमेट ना पहनने के कारण हुआ. इसी प्रकार 16% मामलों मे सीट बेल्ट ना पहनना मृत्यु का कारण रहा. 56136 दुपहिया वाहकों की मृत्यु मामलों में 44666 ऐसे वाहक थे जो बिना हेलमेट चलाते हुए दुर्घटना के शिकार हुए. उत्तरप्रदेश (7069 मृत्यु), महाराष्ट्र (5328 मृत्यु ) तथा मध्यप्रदेश(3819 मृत्यु) राज्यों की सूची में प्रथम तीन राज्य रहे.
प्रबंधन व जागरूकता की आवश्यकता इसलिए भी जान पड़ती है कि सीट बेल्ट प्रावधानों के उल्लंघन के फलस्वरूप होने वाली दुर्घटनाजनित मृत्यु मामलों की संख्या 20885 थी(चालक व यात्री सहित ). जिसमें चालक की मृत्यु के मामलों में 2.3% की बढोतरी वर्ष 2018 के सापेक्ष देखी गई. अधोलिखित आंकड़ों पर सहज दृष्टिपात से यातायात प्रबंधन की आवश्यकता की महत्ता का पता लगाया जा सकता है.		
क्रम संख्या	कारण*	2018	2019
1	हेलमेट न पहनना	43614	44666
2	सीट बेल्ट ना पहनना 	24435	20885
3	मोबाइल का उपयोग 	3707	4945
4	तेजगति(स्पीडिंग)	97588	101723
5	अल्कोहल व ड्रग सेवन कर गाड़ी चलाना 	1188	5325
6	अपघात कर पलायन 	28619	29354
7	ट्राफिक लाइट उल्लंघन 	1545	1797
8	बिना लाइसेंस ड्राविंग 	37585	44385
		उपरोक्त आंकडें स्वतः उद्भाषी हैं तथा उन कारकों को रेखांकित करते हैं जहाँ प्रमुखता से ध्यान देने की जरूरत है. 
वाहन चलते हुए मोबाइल का उपयोग हाल के वर्षों में सड़क दुर्घटना का एक प्रमुख कारक बनकर उभरा है. वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में इस वजह से होनेवाली दुर्घटनाजन्य मृत्यु के प्रकरण में 33% की वृद्धि हुई जो कि अन्य सभी उल्लंघनकारी कारकों में हुई वृद्धि प्रतिशतता में सर्वाधिक है. गलत दिशा से गाड़ी चलाने  की वजह से वर्ष 2019 में 9200 जानें गई. इस श्रेणी में 25% मामले राष्ट्रीय राजमार्गों पर घटित हुए. तेज गति सकड़ों पर हुई मौतों के मामलों में मुखर कारण रहा.
प्रमुख खतरनाक शहर व राज्य: वर्ष 2019  में दिल्ली, जयपुर तथा चेन्नई सड़क दुर्घटना में होने वाली मृत्यु के मामले में प्रथम तीन शहर रहे. महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश इस श्रेणी मे शुमार होने वाले राज्यों में शीर्ष तीन राज्य रहे.
भारतीय सड़कों पर सुभेद्यतम श्रेणी: दुपहिया वाहन चालक, साइकिल चालक व पदयात्री भारतीय सड़कों पर सर्वाधिक सुभेद्य वर्ग है. सड़क दुर्घटनाजनित मौतों के मामलों में वर्ष 2016  में इनकी प्रतिशतता जहाँ 47% थी वहीं वर्ष 2019 में यह बढ़कर 57% हो गई. हैरतअंगेज तथ्य यह है कि राष्ट्रीय राजमार्ग जिसे कुल सड़क नेटवर्क का मात्र 2.03% हिस्सेदारी हासिल है, 36% दुर्घटनाजन्य मृत्यु में अंशदान देती है. इसी प्रकार राज्यीय राजमार्ग जो कुल सड़क नेटवर्क का 5% है, सड़क दुर्घटनाजन्य मृत्यु में 55% की हिस्सेदारी रखती है.
युवा वर्गों की सुभेद्यता: भारतीय सड़कों पर होनेवाली दुर्घटनाजन्य मौतों में 48% हिस्सेदारी 18-35 उम्र के युवा वर्ग का है. वहीं विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि 18-60 आयु वर्गवाले व्यक्तियों की प्रतिशतता 84% है. 
उपरोक्त तथ्यों की सहज मीमांसा से यह  स्पष्ट होता है कि भारत में सड़क सुरक्षा के प्रभावी उपायों की सख्त आवश्यकता है. इन उपायों में निवारक, उपचारात्मक, व सुधारात्मक उपायों को शामिल करना होगा. जन जागरूकता का प्रसार, आधुनिक तकनीक यथा- आर्टिफिसिअल इंटेलिजेंस एवं डाटा अनालिटिक्स का उपयोग, सड़क निर्माण एवं वाहन के डिजाईनिंग, मोटर अधिनियम तथा यातायात नियमों के ठोस प्रवर्तन सुनिश्चित कर सड़क दुर्घटनाओं एवं इनसे होने वाले जान-माल के नुकसान में प्रभावी कमी लाया जा सकता है. उपरोक्त के अलावे निम्नलिखित उपायों को अपनाकर भी इस दिशा में वांछित सफलता हासिल की जा सकती है.
कृष्ण बिंदुओं को चिन्हित करना(Identifying black spot) : कृष्ण बिंदु वह जगह है जहाँ सड़क दुर्घटनायें ऐतिहासिक रूप से सकेंद्रित रही हैं. भारत में ऐसे बिंदुओं को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगभग 500 मी के दायरे में पाए जाने वाले ऐसे जगह जहाँ पिछले तीन वर्षों में 5 बार दुर्घटना अथवा 10 जानें  गईं हों. पूरे देश भर में ऐसे 5489 कृष्ण बिंदुओं की पहचान की गई है. ऐसे अधिकाँश बिंदु तमिलनाडु, प.बंगाल, कर्नाटक, तेलंगाना, आँध्रप्रदेश, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में फैले हुए है. दुर्घटना प्रवण इन बिंदुओं पर दुर्घटना रोकने हेतु त्वरित निवारक एवं सुधारात्मक उपाय यथा रंबल स्ट्रिप्स, प्रकाशीय व्यवस्था, संकेतकों की व्यवस्था, सड़क डिजाइन में सुधार, ओवरब्रिज, बायपास, आदि व्यवस्था अपनाए जाने की जरुरत है.
चालकों में जागरूकता फैलाकर: वर्ष  2015 की 'सड़क दुर्घटना कारण' संबंधित रिपोर्ट के अनुसार 78% दुर्घटनाओं हेतु केवल और केवल चालाक की गलती थी. इन गलतियों में अतिद्रुतता(over speeding) शराब अथवा मादक पदार्थों का सेवन कर गाड़ी चालाना तथा अपघात एवं पलायन (Hit and Run) जैसे कारण शामिल थे. अन्य 71% मामलों में साइकिल चालक, पदयात्री व अन्य वाहनों के चालकों की गलतियाँ थी. वही स्थानीय  निकायों की लापरवाही (2.08%), मोटर यान में खराबी(2.3%) तथा खराब मौसम(1.7%) मामलों में रही. वजह साफ़ है कि चालकों की लापरवाही व शराब एवं मादक पदार्थों का सेवन कर गाड़ी चलाना सड़क दुर्घटना के प्रमुख कारणों में से एक हैं. अतः इस दिशा में निवारक एवं उपचारात्मक उपाय अपनाए जाने की पुरजोर आवश्यकता है. निवारक उपायों में ड्राइविंग लाइसेंस सघन प्रायोगिक जाँच के उपरान्त निर्गत करना तथा यह कम अवधि हेतु जारी करना, आवधिक जाँच के उपरान्त ही नवीनीकरण किया जाना, शराब पीकर गाड़ी चलाने के खतरों से संबंधित चेतावनी विधिक रूप से चालक कक्ष में अंकित किया जाना, राष्ट्रीय राजमार्गों पर औचक निरीक्षण कर चालकों का श्वास परीक्षण करना तथा पकडे जाने पर दंडात्मक कार्यवाही समेत चालाक लायसेंस निलंबित किया जाना, साथ ही प्रति 6 माह में सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाना. इस सप्ताह को दुर्घटनाशून्य सप्ताह मनाये जाने का लक्ष्य निर्धारित कर उसे कठोरता से पालन सुनिश्चित करना. इससे सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में निश्चित रूप से कमी आयेगी. विकसित देशों की तरह भारत में भी साइकिल चालकों के लिए अलग से परिपथ चिन्हित किया जाय. यद्यपि पदयात्रियों हेतु चिन्हित फूटपाथ हैं, किन्तु, ये फूटपाथ विभिन्न वर्गों द्वारा अतिक्रमित हैं. अतः इसे अविलंब अतिक्रमण मुक्त किये जाने की आवश्यकता है. इसके अतरिक्त 'सड़क सुरक्षा सूचना' से संबंधित डाटा केंद्र स्थापित कर, सुरक्षित सड़क अवसंरचना निर्माण कर  तथा सुरक्षा नियमों के प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित कर यातायात जनित दुर्घटनाओं में वांछित  कमी लाई जा सकती है. घटनाओं में निरंतर कमी सुनिचित करने हेतु यातायात मोनिटरिंग प्रणाली  एवं आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने हेतु 'राज्य सड़क सुरक्षा परिषद' तथा जिला सुरक्षा परिषद की स्थापना एवं  इसे प्रभावी रूप से कार्यशील बनाकर इस दिशा में ठोस परिणाम हासिल किया जा सकता है. 
	इसके अतिरिक्त उपचारात्मक उपायों में आपातकालीन स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त किये जाने की जरुरत है. राष्ट्रीय एवं राज्यीय राजमार्गों के परितः स्तरीय आपातकालीन स्वास्थ्य सेवायें एवं ट्रोमा केंद्र की स्थापना द्वारा दुर्घटनाजनित मौतों को कम किया जा सकता है. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौत का अनुमानित लागत  91 लाख रूपये है. अतः यहाँ सड़क दुर्घटनाएं परिवार, समाज एवं राष्ट्र पर बहुत बड़ा वित्तीय बोझ लाद देती है, जिसे गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवायें एवं ट्रौमा केंद्र की स्थापना द्वारा ही कम किया जा सकता है. सारांश यह कि  विकासशील देश विशेषकर  भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतें निश्चित रूप से चिंताजनक स्थिति में है, किन्तु इसे कुशल यातायात प्रबंधन जिसमें 4E का सूत्र- शिक्षा (Education), अभियांत्रिकी (Engineering), प्रवर्तन (Enforcement) तथा आपात सेवायें (Emergency services) अपनाकर अप्रत्याशित रूप से कम किया जा सकता है.

*आंकड़े:  साभार: टाइमस् ऑफ इंडिया, द हिंदू, पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट.

							कृष्ण कुमार चौधरी 

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