Dr Satywan Saurabh 26 Jun 2023 आलेख समाजिक 6668 0 Hindi :: हिंदी
सहमा-सहमा आज ●●●24 सास ससुर सेवा करे, बहुएं करती राज । बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज ।। ●●●25 कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार । कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार ।। ●●●26 परिवर्तन के दौर की, ये कैसी रफ़्तार । गैरों को सिर पर रखें, अपने लगते भार ।। ●●●27 अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान । बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान ।। ●●●28 कौवे में पूर्वज दिखे, पत्थर में भगवान । इंसानो में क्यों यहाँ, दिखे नहीं इंसान ।। ●●●29 जब से पैसा हो गया, संबंधों की माप । मन दर्जी करने लगा, बस खाली आलाप ।। ●●●30 दहेज़ आहुति हो गया, रस्में सब व्यापार । धू-धू कर अब जल रहे, शादी के संस्कार ।। ●●●31 हारे इज़्ज़त आबरू, भीरु बुजदिल लोग । खोकर अपनी सभ्यता, प्रश्नचिन्ह पे लोग ।। ●●●32 अच्छे दिन आये नहीं, सहमा-सहमा आज । ‘सौरभ’ हुए पेट्रोल से, महंगे आलू-प्याज ।। ●●●33 गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल । डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल ।। ●●●34 लूट-खून दंगे कहीं, चोरी भ्रष्टाचार ।। ख़बरें ऐसी ला रहा, रोज सुबह अखबार । ●●●35 मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार । सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार ।। ●●●36 नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव । संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव ।। ●●●37 हम खतरे में जी रहे, बैठी सिर पर मौत । बेवजह ही हम बने, इक-दूजे की सौत ।। ●●●38 जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार । खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार ।। ●●●39 थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वो जात । झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औकात ।। ●●●40 मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन । दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन ।। ●●●41 हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज । रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे हैं आज ।। ●●●42 कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच । झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच ।। ●●●43 योगी भोगी हो गए, संत चले बाजार । अबलायें मठलोक से, रह-रह करे पुकार ।। ●●●44 दफ्तर,थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ । नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ ।।