एक विद्यार्थी हुँ, और एक प्रतियोगी अध्यापक भी।जीवन मे जो दिखता है,जीवन मेरे साथ जो परिस्थितियों को देता है उसे ही साहित्यिक भाषा में लिखने को कोशिश करता हूं।
जो जारी है।।
"धरती रो रही है, पर नेता सो रहे हैं,
विकास के नाम पर जंगल खो रहे हैं।"
"पेड़ अगर सांस हैं,
तो क्यों हो रही इनकी हत्या राजनीति की आड़ में?"
"� read more >>
"प्रेम, समरसता और बंधुत्व"
1.
न हो द्वेष मन में, न बैर का रंग,
हर एक साँस में हो, प्रेम का एक संग।
भले ही अलग हो पहनावा, नाम,
पर सबके भीतर एक-स� read more >>