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DINESH KUMAR KEER

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शालिनी ( प्यारी सी बालिका )  बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंद read more >>
ज़िदंगी को हमेशा खुल कर और जितना हो सके खुश होकर जियो, नहीं पता जो आज है वो कल हो ना हो। -दिनेश कुमार कीर read more >>
प्रेम ( पति - पत्नी का )  एक साहूकार जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था । जिसका नाम था । मोहन लाल जैसे ही मोहन लाल के फ़ोन की घंटी बजी read more >>
किस किस से जाकर कहती ख़ामोशी का राज, अपने अंदर ही ढूंढ रही हूँ अपनी ही आवाज। -दिनेश कुमार कीर read more >>
यह मोहब्बत है ठगों की बस्ती, एक पल में बदल देती है हस्ती; आशिक़ रहते है इश्क़ में बैचेन, इश्क़ जाता है उजाड़ कर बस्ती...! read more >>
फ़िसलती ही चली गई, एक पल, रुकी भी नहीं; अब जा के महसूस हुआ, रेत के जैसी है ज़िंदगी। read more >>
पढ़ लेती है मेरे मुख को, सुन लेती है मौन दुख को, रूठे रूठे से सुख को, मना मना कर लाती है... जाने कहां से 'मां' हुनर लाती है...! read more >>
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