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DINESH KUMAR KEER
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DINESH KUMAR KEER
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@ dinesh-kumar-keer
, Rajasthan
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अपने अधिकार के लिए हमें संघर्ष करना चाहिए- तभी सफलता हमारे कदम चूमती है
शालिनी ( प्यारी सी बालिका ) बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंद
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खुलकर जियो-और जितना हो सके खुश होकर जियो
ज़िदंगी को हमेशा खुल कर और जितना हो सके खुश होकर जियो, नहीं पता जो आज है वो कल हो ना हो। -दिनेश कुमार कीर
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प्रेम -इसे कहते है पति पत्नी का प्रेम ना की जोरू का गुलाम
प्रेम ( पति - पत्नी का ) एक साहूकार जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था । जिसका नाम था । मोहन लाल जैसे ही मोहन लाल के फ़ोन की घंटी बजी
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राज- ख़ामोशी का राज
किस किस से जाकर कहती ख़ामोशी का राज, अपने अंदर ही ढूंढ रही हूँ अपनी ही आवाज। -दिनेश कुमार कीर
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चाहतें भी नफ़रतें भी-ज़िन्दगी बस चार दिन का ही तो मेला है
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इश्क़-यह मोहब्बत है ठगों की बस्ती एक पल में बदल देती है हस्ती
यह मोहब्बत है ठगों की बस्ती, एक पल में बदल देती है हस्ती; आशिक़ रहते है इश्क़ में बैचेन, इश्क़ जाता है उजाड़ कर बस्ती...!
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ज़िन्दगी-अब जा के महसूस हुआ रेत के जैसी है ज़िंदगी
फ़िसलती ही चली गई, एक पल, रुकी भी नहीं; अब जा के महसूस हुआ, रेत के जैसी है ज़िंदगी।
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माँ-पढ़ लेती है मेरे मुख को सुन लेती है मौन दुख को
पढ़ लेती है मेरे मुख को, सुन लेती है मौन दुख को, रूठे रूठे से सुख को, मना मना कर लाती है... जाने कहां से 'मां' हुनर लाती है...!
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शुभ प्रभात-हमें शराबी कबाड़ी लोगों से सदैव दूर रहने का प्रयास करना चाहिए
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तालियाँ-अपने कर्तव्यों को पूरा करना ही सच्ची देशभक्ति है
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