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Umendra nirala

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@ umendra-nirala
, Madhya Pradesh

I am a student and I am interested writing poem.

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My Articles

कुछ न होते हुए झूठे अरमान में है, पर कटा परिंदा भी अब उड़ान मे है। रहे शिकन माथे पर क़स रहे थे ताने, जीत हुई निश्चय तो सारा जहान है। गाँव क read more >>
गुनाह कर सर उठाये बोलता है, गीता कि क़सम खाकर न्याय तौलता है। अपने गुनाहों में डाल पर्दा खड़ा हुआ है, शातिर सा औरों के राज खोलता है। नाग read more >>
हे बादल! अब तो बरसो भू - गर्भ में सुप्त अंकुर क्षीण अनाशक्त, दैन्य-जड़ित अपलक नत-नयन चेतन मन है, शांत। नीर प्लावन ला एक़ बार देख प्रकोप ह read more >>
जब मैं निः शब्द हो जाता हूँ, नही सूझता जब कुछ भी तब कलम बोलती है। जब अन्याय की सरगर्मी तेज़ हो, न्याय दबाने के प्रयास हुए तब कलम बोलती read more >>
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