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संघर्ष

Umendra nirala 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य Umendra nirala poetry .com 19319 0 Hindi :: हिंदी

करता क्यों प्रयास नहीं
आंखें धुंधला गई क्या तेरी,
वक्त बड़ा गर्दिश है साहब
फिर से करता क्यों प्रयास नहीं।
मिली असफलता अनेकों बार
मन को ना घबराने दूंगा,
हार कर ही तो जीतता हूं
यह कैसे भूल जाऊंगा।
         
        कैसे भूल जाऊं उस पथ को
       उसने याद दिलाया है,
       कैसे बैठ जाऊं थककर
       जिसने कई रातें जगाया है।
       मन छोटा सा आस बड़ी है
       मन ही मन आहत है,
       जल जाने दो तप जाने दो
        कुछ करने की चाहत है।
          
नदियां झरने और समंदर
 दे रहे संदेश बढ़ने को,
सफलता तो बड़ी जीत है
मैं जाऊं क्यों सोने को ।
कांटो की राहों पर
पथरीली चालों पर चलना है,
और सफल न होने पर 
लगातार प्रयास करना है।

        छोटा कद या बड़ी अमीरी
        सफलता को ना भाती है,
        कर प्रयास लगातार तू
        सफलता को दिख जाती है।
        करते-करते प्रयास सदा
        एक दिन कर जाऊंगा,
       रख हौसला करने का
       एक दिन निखर जाऊंगा।

कर संघर्ष निरंतर तू
सफलता तेरे पास खड़ी है,
और आ जाने दो हजार असफलता
सफलता के लिए तो आस बड़ी है।
सफलता के मार्ग में बाधाओं का
आना तय है,
रखकर विश्वास रगों में तू
निश्चय जीत जाना तय है।

          (संघर्ष)
                      Umendra nirala

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