Umendra nirala 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 89803 0 Hindi :: हिंदी
जब मैं निः शब्द हो जाता हूँ, नही सूझता जब कुछ भी तब कलम बोलती है। जब अन्याय की सरगर्मी तेज़ हो, न्याय दबाने के प्रयास हुए तब कलम बोलती है। गरीबी व लाचारी जब बेबसी बन जाये, और इसी मौके का फायदा कोई दूसरा उठाये तब कलम बोलती है। अंधे लंगड़े व मुकबधिर से जब सहानुभूति हटे, न दे साथ कोई अपना भी तब कलम बोलती है। दूसरों के सामने तू अपनी किस्मत रोये, सही पहचान अपनी न कर पाए तब कलम बोलती है। वर्षों के लिपटे कागजी काम, भ्रष्टाचार की बुनियाद सिर चढ़े, रिश्वत के दम पर काम हो तब कलम बोलती है। पल में छोटे कद को बड़ा कर दे, शून्य से शिखर तक पहुँचा दे, यह है कलम की असली ताक़त।