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कविता -मेरा बचपन मेरे बचपन का वह एक जमाना था ना दुख का ना गम का बस खुशियों का खजाना था। दिन भर के भाग दौड़ में ना जाने किसकी चाहत में read more >>
क्या वह भी दिन थे। बचपन था या स्वर्लोक धूप में खेले धूल में खेले मां बाप के गोद में खेले खेले साथियों के साथ में क्या वह भी दिन थे। मां read more >>
इस कविता के माध्यम से पिता की मेहनत और उस मेहनत से परिवार ओर बच्चों की उम्मीद का एक वाकया लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। की किस तरह एक पिता द read more >>
कविता -मीठी बोल बोलने से पूर्व प्यारे, बोल का तू तोल कर ले। देख लो कोयल की कूक टेरती है बोल न्यारी काग सी काली भले है ,है मनोहर बोल प्या read more >>
हां माना औरत हूं मै समाज की बेड़ियों से बंधी नायाब शौहरत हुं,मैं तो चलो एक मुलाकात ख़ुद के साथ हो जाए, एक कोशिश ज़माने के साथ हो जाए पर उल read more >>
कविता -बड्डे पर कविता प्यारी मैम हमारी हो कॉलेज की उजियारी हो नन्हे-मुन्ने हम फूलों की मैंम आप फुलवारी हो। तुम बच्चों में बच्चे ह read more >>
कविता -बुढ़ापे की रोटी किसके चाह में भटकते हो राह में अपनो से अलग करते औलाद को बिना उम्र के बस्ते के बोझ को लाद देते हो बिना किसी सों read more >>
कविता -प्रकृति ही परिवर्तन है प्रकृति ही परिवर्तन है परिवर्तन धरती अम्बर है सुख से पहले दुःख का आना राई का पर्वत बन जाना नन्ही कलिय read more >>
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