संदीप कुमार सिंह 29 May 2023 गीत समाजिक मेरा यह गीत समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5226 0 Hindi :: हिंदी
मिटी न मन की लालसा,बढ़ता जाता ख्वाब। कैसे काबू मैं करूं, जीवन की यह आब।। मिटी न मन की लालसा,मेरे बहु अरमान। फौलादी मेरी अदा,फैले खूब जहान।। मिटी न मन की लालसा,नहीं मिटाना यार। जीने की हो लालसा,धरा स्वर्ग गुलजार।। मिटी न मन की लालसा,क्यों होते हो शांत। कुछ तो कुछ करते रहें,जीवन में हो कांत।। मिटी न मन की लालसा,जीने का आधार। चाहत मेरी है जवाँ,मुझ से उसको प्यार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....