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विद्योतमा

Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक जितेन्द्र शर्मा की कहानी। प्रेरक कहानियां। बाल कथा। हमारे महान पूर्वजों। 8705 1 5 Hindi :: हिंदी

कहानी- विद्योतमा
रचना- जितेन्द्र शर्मा
तिथी-20/01/2023

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पंडित कृपाराम मिश्र सेवानिवृत्त अध्यापक हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। उनके परिश्रम का एक सुफल यह भी है कि उनके बच्चे भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सरकारी सेवा में प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हो गए। वह अपनी पत्नी के साथ अपने बड़े बेटे के पास रहते हैं। उनका बड़ा बेटा विकास मिश्रा सरकारी अधिकारी है। उनकी दो संताने हैं। पहला आठ वर्षीय बेटा दीपक मिश्र व छोटी छ: वर्षीय साधना। पंडित जी दीपक को दीपू तथा साधना चिंकी कहते हैं। बच्चे अपना अधिकतर खाली समय अपने दादाजी के साथ ही गुजारते हैं। पंडित जी अक्सर उन्हें प्रेरक कहानियां सुनाते हैं उनकी अधिकतर कहानियां भारत में जन्मे महान व्यक्तियों से जुड़ी होती हैं।  जिन्हे बच्चे बड़े चाव से सुनते हैं। आज भी बच्चों ने कहानी सुनाने का आग्रह किया तो पंडित जी ने कहानी प्रारंभ करते हुए कहा कि बच्चों हमारे महान पूर्वजों में पुरुषों की तरह अनेक नारियों ने भी अपने ज्ञान,  वीरता, साहस और त्याग से स्वयं को सिद्ध किया है और इस पवित्र भूमि पर अपने पद चिन्ह छोड़े हैं। आज मैं तुम्हें एक ऐसी ही नारी की कहानी सुनाने जा रहा हूं।
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प्राचीन काल की बात है। शारदानन्द नाम के एक राजा हुए। हमारे महान देश के एक छोटे से भाग पर उनका शासन था। ईश्वर ने उनके पुन्य कर्मों के उपहार में विद्योत्तमा नाम की एक कन्या दी। विद्योत्तमा बड़ी विलक्षण बालिका थी। राजा ने अपनी पुत्री के लिए शिक्षा दीक्षा की सर्वोत्तम  व्यवस्था की। जो कुछ भी विद्योत्तमा को बताया सिखाया जाता, वह तुरंत उसे याद कर लेती। दिनोंदिन उसके ज्ञान में वृद्धि होती गई और इसके साथ साथ उसके ज्ञान और योग्यता की प्रशंसा पूरे देश में होने लगी। शिक्षा पूर्ण होते होते विद्योतमा युवा हो गई। राजा शारदानंद को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। चिंता इसलिए कि विद्योतमा बहुत ही विद्वान युवती थी। उसकी विद्वत्ता की ख्याति दूर दूर तक थी। राजा शारदानंद अपनी बेटी के लिए उससे अधिक विद्वान वर चाहते थे। अतः उन्होंने घोषणा कर दी कि जो भी विद्वान युवक उनकी बेटी को शास्त्रार्थ में हरा देगा उसके साथ ही वे विद्योतमा का विवाह कर देंगे।
कोन युवक इतनी विदूषी युवती से विवाह न करना चाहेगा। अतः पूरे देश से विद्वान युवक विद्योतमा के साथ विवाह की इच्छा लेकर शास्त्रार्थ करने के लिए आने लगे। जो भी युवक विद्योतमा से शास्त्रार्थ के लिए आता विद्योतमा उसे तत्काल शास्त्रार्थ में हरा देती। इस प्रकार सैकड़ों विद्वान आए और हार कर वापस चले गए। 
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उनमें दो ऐसे विद्वान व्यक्ति भी थे जिन्हें अपनी विद्वत्ता और योग्यता पर बड़ा अभिमान था। वह स्वयं को देश में सबसे बड़ा विद्वान समझते थे। शास्त्रार्थ में विद्योतमा से हारने पर उन्हें अपना बहुत ही अपमान लगा। वे दोनों विद्वान आपस में परिचित थे। उन्होंने प्रतिशोध लेने की इच्छा से आपस में विमर्श किया और यह तय किया कि किसी तरह विद्योतमा का विवाह किसी मूर्ख व्यक्ति से करा दिया जाए। यदि वे ऐसा करने में समर्थ हुए तो एक प्रकार से उनकी विद्योतमा पर यह विजय ही होगी, और उनका प्रतिशौध पूरा हो जायेगा। उनमें से एक युवक का नाम विरजानंद तथा दूसरे का नाम आत्मानंद था विरजानंद ने आत्मानंद से कहा- "देखा आत्मानंद! वह दुष्ट नारी कितनी घमंडी है। और उसका बाप, राजा है तो क्या हुआ अपनी बेटी को क्या पुरुषों के सिर पर बैठा देगा।"
आत्मानन्द ने सहमत होते हुए कहा-"ठीक कहते हो भाई विरजानंद! मेरा भी जीवन में कभी इतना अपमान कभी नहीं हुआ।
लोग सुनेंगे कि हम एक साधारण नारी से शास्त्रार्थ में हार गए तो क्या सम्मान रह जाएगा हमारा?"
दोनों विद्वान युवक विचार करने लगे कि किस प्रकार से विद्योतमा से अपने अपमान का बदला लिया जाए। दोनों ने मिलकर तय किया की छल कपट द्वारा किसी मूर्ख युवक से विद्योतमा का विवाह करा कर वह अपने अपमान का बदला ले सकते हैं। अतः उन्होंने एक मूर्ख युवक को तलाश करना शुरू कर दिया।
मूर्ख युवक की तलाश में भटकते भटकते दोनो एक गांव के निकट जंगल से गुजर रहे थे। उन्होंने एक युवक को एक वृक्ष पर चढ़कर वृक्ष के तने को काटते देखा। वह युवक वृक्ष के उसी तने पर  बैठा था जिसको काट रहा था। उसे देखकर दोनों समझ गये कि जिस मूर्ख की तलाश उन्हें थी वह यही है।
वह युवक पास के गांव में रहता था तथा उसका नाम रामबोला था। दोनों ने रामबोला को विवाह का लालच देकर अपने साथ ले लिया। कुछ दिन तक युवक को दोनों ने कुछ बातें समझाई तथा वह दोनों उस मूर्ख युवक को एक विद्वान पंडित का वेष बनाकर अपने साथ राजा के दरबार में लेकर पहुंचे।
उन्होंने राजा से युवक का परिचय कराते हुए कहा कि यह युवक बहुत बड़ा विद्वान हैं। इसका नाम आत्माराम दुबे है। यह आपकी पुत्री को  शास्त्रार्थ  में परास्त करके उससे विवाह करना चाहता है। राजा और उनकी पुत्री के सहमत होने पर वे कपटी विद्वान बोले कि इस समय यह विद्वान पंडित चालीस दिन के लिये मोन धारण किये हुए हैं। आप जो भी प्रश्न करेंगे उसका उत्तर यह संकेतों में देंगे।
विद्योत्तमा ने शर्त स्वीकार कर ली तथा शास्त्रार्थ शुरू हुआ। विद्योतमा ने कहा कि मैं भी संकेतों में ही बात करूंगी ताकि दोनों के पास समान अवसर वह साधन हों। दोनों आमने सामने बैठ गये।
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विद्योतमा ने शास्त्रार्थ प्रारम्भ करते हुए अपने दाहिने हाथ की एक उंगली उठाई जिसका आशय था कि ईश्वर एक है  और वही इस पूरे ब्रह्माण्ड का रचयिता और पालक है। मूर्ख युवक विद्योतमा को अपनी ओर एक उंगली उठाने से समझा कि यह लड़की मेरी एक आंख फोड़ने की धमकी दे रही है। अतः उत्तर में उसने अपने दाहिने हाथ की दो उंगलियां उसकी और उठा दीं ताकि बता सके कि वह बदले में उसकी दोनों आंखें फोड़ देगा। विद्योतमा ने युवक के इस संकेत का आशय जानने की इच्छा से उन कपटी पंडितों की ओर देखा। उन्होने बताया कि यह विद्वान कहना चाहता है कि एक ईश्वर और एक प्रकृति दोनों एक होकर भी उनकी स्वतंत्र सत्ता है। अतः दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। 
विद्योतमा इस उत्तर से संतुष्ट हुई तथा शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाते हुए अपने हाथ की पांचों उंगली उठाकर संकेत किया जिसका आशय था कि ईश्वर ने प्रकृति की संरचना पंचमहाभूतों(अग्नी, जल, पृथ्वी, वायु व अंतरिक्ष) से की है। मूर्ख ने समझा कि इस बार लड़की पंजा दिखाकर कहना चाहती है कि मैं तुम्हें थप्पड़ मार दूंगी। अतः बदले में उसने मुट्ठी बंद करके घूंसा दिखाया। जिसकी कपटी ब्राह्मणों व्याख्या की, कि विद्वान पंडित कह रहा है की आपने जो पंच महाभूतों की बात की है जब तक आपस में नहीं मिल जाते तब तक प्रकृति का निर्माण नहीं होता। और मुट्ठी दिखाने तात्पर्य ही यही कि इनके सामूहिक होने से ही ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है। इस प्रकार विद्योत्तमा कुछ संकेत करती जिसके बदले में मूर्ख युवक अपनी अल्पबुद्धी के अनुसार अर्थ निकालकर मनचाहा संकेत कर देता। जिसकी व्याख्या दोनों कपटी पंडित शास्त्रों के अनुसार कर देते।  अंततः विद्योत्तमा ने स्वीकार किया कि यह युवक उससे अधिक विद्वान हैं।
राजा ने दोनों का विवाह कर दिया। 
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विवाह के बाद विद्योत्तमा अपने पति के साथ अपने पिता के घर से विदा हुई। दोनों कपटी ब्राह्मण भी साथ-साथ थे। जब वे सब उस राज्य की सीमा से बहुत दूर निकल गये तो दोनों कपटी ब्राह्मण विद्योतमा से बोले कि सुन घमंडी लड़की तूने हमारा  बहुत अपमान किया था। हमने तुमसे बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। हम उसमें सफल हुए। यह जो तुम्हारा पति है यह कोई विद्वान पंडित नहीं बल्कि एक  अशिक्षित और मूर्ख युवक है। विद्योतमा अवाक रह गई, वह अचम्भित थी कि कोई कैसे उसके साथ इतना बड़ा छल कर सकता है। वह बहुत दुखी थी किन्तु उसने धैर्य नहीं खोया। वह उन कपटी ब्राह्मणों से बोली कि अरे दुष्टों! तुमने कपट से मेरा विवाह अवश्य एक मूर्ख व्यक्ति से करा दिया है किंतु मैं राजा शारदानन्द की पुत्री विद्योतमा आज ईश्वर को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करती हूं कि अपने पति को तुम से बड़ा विद्वान बना कर सिद्ध कर दूंगी कि मैं तुम दुष्टों से अधिक विद्वान व श्रेष्ठ हूं।। मैं अपनी भाग्य विधाता स्वयं हूं। यह युवक जिसे तुम मूर्ख कहते हो और छल से तुमने इसे मेरा पति बना दिया है मेरे प्रयास से वह भविष्य में तुमसे बड़ा विद्वान होगा। विद्योत्तमा की प्रतिज्ञा सुनकर दोनों कपटियों ने विचार किया कि यह युवती दुख से पागल हो गई है। वे दोनों उन्हें वहीं छोड़कर अपने नगर की ओर चले गये।
***
इस दुख की घड़ी में उस वीर नारी ने हिम्मत नहीं हारी। वह पूरे मनोयोग से अपने अशिक्षित पति को शिक्षित करने में जुट गई। उसका परिश्रम सफल हुआ। आगे चलकर वह व्यक्ति संस्कृत का महान विद्वान महाकवि कालिदास बना।
वह देवी काली का अनन्य भक्त था इसलिए उसने अपना नाम बदलकर कालिदास रखा। वही कालीदास आज महाकवि कालीदास नाम से जाना जाता है। उन्होने संस्कृत भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की।
महाकवि कालीदास को विश्व का पहला नाटककार माना जाता है। उन्होंने संस्कृत के विश्व प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' की रचना की।

पंडित कृपाराम मिश्र ने अपनी कहानी पूर्ण की तथा दीपु और चिंकी से पूछा-"बच्चों कहानी कैसी लगी?"
"बहुत अच्छी कहानी थी दादा जी।" दोनों बच्चों ने कहा।
"चिंकी तुम बताओ कि तुम्हे इस कहानी से क्या शिक्षा मिली।" पंडित जी ने अपनी पोत्री से मुस्कराकर पूछा।
"दादा मैंने सीखा कि गर्ल्स भी ब्यायज से कम नहीं होती।" चिंकी ने अपने बड़े भाई दीपु की ओर जीभ निकालकर चिढ़ाते हुए कहा।
पंडित जी नन्ही सी चिंकी की बात सुनकर हंसते हुए बोले-"जाओ बच्चों अब सो जाओ। आपके सोने का समय हो गया है।"
दोनों बच्चों ने अपने दादाजी को शुभरात्री कहा तथा पंडितजी के कमरे से निकल गये।
***
सम्पूर्ण।

Comments & Reviews

Jitendra Sharma
Jitendra Sharma Good.

1 year ago

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