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Santosh kumar koli ' अकेला'

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My Articles

कहां साधते हैं, सीधे गुण को। मानते हैं, मिश्रित गुण -अवगुण को। तड़फती मीन डालें तड़ाग, समझे वरुण को। ज़रा समझ ना आए, जरा तारुण को। मरह read more >>
विक्षोभ, विक्षत, विक्षुब्ध, संपीड़ित घुटन, घुमड़ी, टकराती तड़ित्। चिंता सज्जित, तनाव जड़ित। ना पर, परा, स्वयं गढ़ित। स्फूरण, स्फूर् read more >>
मैं, तू मजबूर, मजबूर सारी दुनिया। लिया -दिया हो जाता, दिया- लिया। दिग्गज के दिन दरकते, लुढ़कता हाशिया। समझ से परे, ईश्वर की ग़ज़ब गुनिय read more >>
उद्धेग, उद्दंड, उच्छृंखल, उचित -अनुचित। कब ऋजु, कब गरब गहेला, कब तीव्र उत्तेजित। कब दृढ़निश्चयी, कब दिग् भ्रमित। कब रिस, कब उद्धर्ष, कब read more >>
हो कितना ही अंध तमस्, चाहिए एक तीली। दिल चीरने की क्षमता, रखती यह छबीली। होता सोता को, भाती नहीं जोत पीली। अंधेरे को निगल, करेगी उजास म read more >>
किसी का काम से, किसी का नाम से। किसी का याम से, किसी का दाम से। किसी के हाथ फेरने से, बदलता कलेवर। ज़ेवर से बदलते तेवर। किसी का आलंबन से, read more >>
घृणित, निंदित कर्म पाप, कृत पाप है कर्म संताप। कर्त्ता हत अपने- आप, पाप भार से घटे जीवन चाप। लक्ष यतन से छिपता नहीं, कर्दम -कराड़ वंश बढ़ read more >>
प्रकृति प्रकृष्ट सार से, बना दीपक। स्निग्ध, बाती, जोत, रखा प्रदीपक। तेल, बाती संयोजन से, प्रज्वलित धक-धक। दीपन, मापन, रोधन, हस्त समापक। read more >>
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