Santoshi devi 30 Mar 2023 गीत समाजिक फितरत, स्वभाव 29752 0 Hindi :: हिंदी
उभरते हैं सीरत के दाग, सब सूरत पर। पैतरे लाख आजमाएं, कुछ बदल बदल। दर्पण माफिक झलकता रूप, है शक्ल-शक्ल। गिड़गिड़ाता दिखता है झूठ, निज जरुरत पर। उभरते है सीरत के दाग, सब सूरत पर। खड़ा पाता है यथार्थ को, कभी सामने। बदलते मुख पृष्ठों के साथ, कथन मायने। आस टिकाता रहे दर ब दर, कुछ नुसरत पर। उभरते है सीरत के दाग, सब सूरत पर। अल्फाज और नजरों का जब, सम खेल नहीं। होता जब सीरत सूरत का, यह मेल नहीं। टिका नहीं है केवल जीवन, कुछ इशरत पर। उभरते है सीरत के दाग, सब सूरत पर।