SANTOSH KUMAR BARGORIA 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग इस कविता के माध्यम से कवि अपने विचारों को प्रकट करते हुए यह बताना चाहता है कि मेरा यह बेचैन दिल बिना कर्म किये ही सबकुछ पाना चाहता है और सफलता ना मिलने पर सारा दोष दूसरो के सर पर मढ़ देना चाहता है पर खुद पर कोई इल्ज़ाम लेना नहीं चाहता है । 51324 0 Hindi :: हिंदी
बेचैन दिल ये मेरा जालिम, कुछ सुनने का अब नाम ना ले । बस दोष मढ़े सर औरो के, खुदपर कोई इल्ज़ाम ना ले।। चाहत तो थी की मैं बनु नेता, पर चाहत से कहां कोई बात बने। कर्म किए ही नहीं हमने ऐसे, जिसपर जनता हमें ध्यान तो दे ।। बेचैन दिल ये मेरा जालिम, कुछ सुनने का ये नाम ना ले ।2। सत्यवादी हरिश्चचन्द्र तो मैं नहीं, जिस पर जनता विश्वास करे । औरो के सच को सफेद झूठ बना , कैसे फिर बेड़ा पार लगे ।। ये कर्मभूमि है साहब, जहां कर्मो का हिसाब मिले। बेचैन दिल ये मेरा जालिम, कुछ सुनने का ये नाम ना ले ।।2।। संतोष कुमार बरगोरिया ------------------------------- (साधारण जनमानस)
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