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हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा

Prerna sharma 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा 44203 0 Hindi :: हिंदी

जमाने से दूर कहीं खामोश बैठी है परंपरा
साथ होकर भी लुप्त हो गई है परंपरा,

पहले हर मुल्क की पहचान थी  परंपरा
अब कई हिस्सों में बँट कर रह गई है परंपरा

पहले अपनों की याद दिलाती थी परंपरा
अब किसी जिक्र की मोहताज हो गई है परंपरा,

पहले सही सोच की आदी थी  परंपरा
अब गलत विचारों का शिकार बन गई है परंपरा,

पहले एक त्यौहार का रूप थी परंपरा
अब तकरार का रूप बना दी गई है परंपरा
 
पहले हर भाषा की निशानी थी  परंपरा 
अब केवल किताबी ज्ञान बन गई है परंपरा

समझा नहीं किसी ने उसको अपना
इसलिए सभी से नाराज हो गई है परंपरा

- बदलते समय के साथ साथ हम सभी अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं को भूलते जा रहे हैं जो कि सरासर अन्याय है अपनी परंपराओं के खिलाफ क्योंकि हम भूल जाते हैं कि हम एक माटी का खिलौना है जिसकी सिंचाई हमारी संस्कृति और हमारी परंपराओं द्वारा हुई है।

 लेखिका प्रेरणा शर्मा

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