संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता काफी रोमांच देगी आप सभी पाठक लोगों को। 19019 0 Hindi :: हिंदी
कल्पना करूं _कल्पना करूं, नित ही नूतन कल्पना करूं। मनुज जन्म क्यों कर मिला है? स्वयं को पहचानने का प्रयास करूं। कल्पना करूं _कल्पना करूं, एक दिव्य ज़िंदगी की कल्पना करूं। जो चाहूं वो हो जाए, जो मांगू वो मिल जाए। कल्पना करूं _कल्पना करूं, स्वर्ग की अवधारणा को सच करूं। बुद्धि में प्रभु इतना प्रखरता दें दें, सही को सही_गलत को गलत कहूं। कल्पना करूं _कल्पना करूं, रोगप्रतिरोधक क्षमता और बढ़े। स्वस्थ्य शरीर और स्वस्थ मन का, शक्ती कभी भी न्यून ना हों। कल्पना करूं _कल्पना करूं, दुनिया से दुःख का खात्मा हों। सु:खों का सर्वदा ही राज रहे, समस्त प्राणी आनंदमय में रहें। कल्पना करूं_कल्पना करूं, वसुन्धरा हमारी लहलहाते रहें। सर्व घर सदा ही सुरभित रहें, अम्बर से दुआओं की बारिश हों। संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....