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काश दिखावे के बजाय

SANTOSH KUMAR BARGORIA 11 Apr 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग इस कविता के माध्ययम से मैं कवि संतोष कुमार बरगोरिया अपने लोगों को यह बताना चाहता हूं की काश यदि हम अपने जाग्रत होने का दिखावा करने के बजाय हम यदि हम सचमुच चिर निन्द्रा से जाग चुके होतेे तो बाबा साहब डा० भीमराव अम्बेडकर जी की प्रतिमा पर सिर्फ माल्य अर्पण कर अपने तस्वीर नहीं खिचाा रहे होते वल्कि उनके द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चलकर शासन प्रशासन से अबतक अपना हक प्राप्त कर चुके होते । 9067 0 Hindi :: हिंदी

काश दिखावे के बजाय
         चिर निन्द्रा से
गर हम सचमुच जाग उठे होते 
      ना करते प्रदर्शनी 
 बाबा साहब की प्रतिमा पर
 सिर्फ माल्य अर्पण करने का 
  बल्कि उनके पद चिन्हों पर 
       हम चल रहे होते ।।

   स्वप्न पूरा करते हम उनका 
    कौमहित का काम करते 
ना टांग खीच किसी अपने का ही 
आपस में ही संघर्ष कर रहे होते ।।

    काश दिखावे के बजाय 
  हम सचमुच जाग चुके होते ।

   अपनी लड़ाई होती कौमहित 
             के खातिर 
   हम अबतक प्रशासन की नींद
             उड़ा चुके होते 
        अपनी बबुलन्द आवाज 
अपने इलाके के गली मुहल्ले से निकल 
          सांसद में गूंज रहे होते ।।

        काश दिखावे के बजाय 
      हम सचमुच जाग उठे होते ।।2।।

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