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कल वो भूखा ही सो गया

DIGVIJAY NATH DUBEY 24 May 2023 कविताएँ समाजिक #India #दिग्दर्शन 7713 0 Hindi :: हिंदी

कल वो भूखा ही सो गया 
मजदूरी का सहारा लिए 
जो कल तक दे रहा था 
सहारा उस परिवार को 
जो इंतजार करता था दिन भर 
आएगा शाम कभी 
मिल जाएगी इस क्षुदा को चैन 
वो इंतजार ना होने देता था 
कभी विचलित अपने उद्देश्य से 
पर लग गया ग्रहण उस शाम को 
जब दिन से रात हो गया 
हां कल वो भूखा ही सो गया ।।

बंद हो गए वो सपनों के रास्ते 
वीरान हो गई है गलियां 
जो कल अपनों के साथ में 
रहना चाहता था हर पल 
आज जाना चाहता है बाहर
ये जाने का मतलब ये नहीं 
की वो चाहता नहीं उनको 
उनकी ही क्षुदा के 
पीड़ा कैसे सहे वो 
दुनिया कि नजरो से 
वो न जाने कहा खो गया 
हां कल वो भूखा ही सी गया ।

जब शाम से रात हो जाती 
इंतजार करते वो बच्चों के सूखे होठ 
इस उम्मीद में कि 
क्षुदा कि बेचैनी को शांत करने 
आएगा कभी ना कभी 
तात कि राहें निहारते निहारते 
आंखें बंद हो हो कर खुल रही 
भूख को दबाने हेतु 
ईश्वर ने नींद है भेज दी थी 
कब तक जगता उम्मीद लिए 
सीमाएं लांघ गई वो घड़ी 
रात कि बेला से सवेरा हो गया 
हां कल वो भूखा ही सो गया ।

आए थे रात तुम्हारे 
तात भरी बेला पे 
छिप छिपाकर इधर उधर 
निहारते विहारते
कुछ है नहीं साथ में 
शर्म सी लग रही 
पर आने से पहले ही 
नींद अपना काम कर चुकी थी 
कड़कती उस ठंड में 
बिना क्षुधा को शांत किए 
बिलखते फुसकते वो भी खो गया 
हां कल वो भूखा ही सो गया ।


  दिग्दर्शन

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