Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद कितना अकेला हूँ मैं 52702 1 5 Hindi :: हिंदी
कितना अकेला हूँ मैं, खुद को कितना सहता हूँ मैं, रोज मरता हूँ मैं, रोज अपने को मारता हूँ मैं, दुनिया की इस जदोजद मैं ना रहता हूँ मैं, अपने ही सपनों की दुनिया में रोज मरता हूँ मैं । कितना अकेला हूँ मैं खुद को कितना सहता हूँ मैं । दूसरों के सपनो को हकीकत करने में मरता हूँ मैं, अपने सपनों को रोज दूसरे के सपनो के लिए रोज कुचलता हूँ मैं, दूर जाकर कहीं अपनो के लिए अकेले में लडता हूँ मैं, प्यार पाने की उम्र में बोझ लेकर कंधों पर निपट अकेला रोता हूँ मैं, कितना अकेला हूँ मैं खुद को कितना सहता हूँ मैं । दुनिया की इस चकाचौंध से दूर रहता हूँ मैं, अपनी ही किस्मत को रोज कोसता हूँ मैं, अपने ही सपनों से रोज समझोता करता हूँ मैं, कितना अकेला हूँ मैं खुद को कितना सहता हूँ मैं । कभी गम में तो कभी किसी के धोके में रहता हूँ मैं, कभी अपनो से तो कभी दिल से समझोता करता हूँ मैं, दुनिया की हर खुशी की खोज में रोज रहता हूँ मैं, इतना अकेला हूँ मैं की कभी खुल कर हँसता हूँ भी नहीं, कितना अकेला हूँ मैं खुद को कितना सहता हूँ मैं ।
1 year ago