Devendra sharma 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद यह कविता जिन्दगी के सारे उतार चढ़ाव को इंसान अपने आखिरी वक्त मे दूर से देखता हुआ दिखाती है 45290 0 Hindi :: हिंदी
कुछ टूट गया, कुछ फूट गया। माटी का ,खिलौना रूठ गया।। तन लूट रहा, मन मौन रहा। छाती से वजन, सा छूट गया।। न राम मिला ,न श्याम मिला । न जाने मैं ,किस किस को ढूँढ गया।। जब जन्म लिया, तब समझ लिया। कोई तो कानों में ,कुछ फूंक गया।। जवानी का जब ये, जाम पिया। अन्धकार में, जैसे मै सूत गया।। उतरा नशा जवानी का, इस झूठी सी जिन्दगानी का ।शयन शैय्या के झूले पे, चुपचाप सा जाके झूल गया।। एक हुस्न दिखा, शीशे की तरह। जब पास गया तो, शीशा टूट गया।। हम गिरते ही रहे, पैरों में । वो मरते ही रहे, गैरो पे ।। ये देख के मेरी आँखो से ,पानी को समंदर छूट गया ।धुंधली धुंधली यादो से ,झूठे मीठे वादो से।। मै जीवन को, जीना भूल गया।।। कुछ टूट गया कुछ',,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, Devendra Sharma Mumbai Maharashtra
I am hindi language writer. Write theater story screenplay poem . Subject Social crime dramas Si...