Chainsingh saheriya 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक आधुनिक ता और मूल्य 20095 0 Hindi :: हिंदी
पीढ़ियों से जहां एक पेड़ पीपल का था वो कहाँ गया? पतझड़ में, जिसकी छाँव बड़ी शीतल, थी और जिसके नीचे बिना धर्म की बैठक थी! ओ हो ! हमने उसे खो दिया साहब! अब तो वहां, बहुमंजिला इमारते खड़ी हो गयी है! अब तो वहां विकास हो गया है! अरे साहब , अब तो वहां दूरसंचार का लाट (टावर) है! हमने उसका पतन कर दिया, वाह री, समृद्धि तुझे पता नही हमने क्या खो दिया? जहां से एक सकारात्मक ऊर्जा का उत्सिर्जन था हमने वो स्रोत खो दिया! जहां से ज्ञान का आविर्भाव था वो शब्दकोश खो दिया! जहां सनातनी संस्कृति थी, उस धर्म को भी खो दिया! वाह री नूतन संस्कृति अब मां बच्चो को चुप भी मोबाइल से कराती है जिस समय बाल संस्कार देना चाहिए, उस उम्र के बालक इंस्टाग्राम और फेस बुक चलाते हैं जिन हाँतो में किताबे होना थी, उन हाँतो में मोबाइल है, साहब हमने क्या क्या खो दिया! जहां से लोग बाँटना सीख रहे, वहां सयुक्त परिवार कैसे हो सकते है? जहां धर्म के नाम पर जहर बाँटा जा रहा हो, वहां सोहार्द की भावना कैसे आयेगी साहब? आप तो यही इतिहास बता रहे हो, जाति और धर्म पर एक नफरत फैला रहे हो! "अंधों मे काने राजा" कि, तरह इस्तेहारों मे खुद ही छा गए हो! बहुत अच्छा है, साहब युवाओं को स्वावलंबी बना रहे हो, राजनीति, का भीड़तंत्र बना रहे हो, आप का तो इसमें भला है साहब पर देश को कहाँ ले जा रहे हो?