Sombir Sharma 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मंज़िल मिल जाएगी 53342 0 Hindi :: हिंदी
थोड़ा डूबूँगा थोड़ा टूटँगा लेकिन फिर लौट आऊँगा ए ज़िंदगी तू देख मैं फिर जीत जाऊँगा। एक ना एक दिन मंज़िल मिल जाएगी, ठोकरें ज़हर तो नही जो खाकर मर जाऊँगा। हमारा नाम इतना भी कमज़ोर नही, जो दो चार दुश्मनो की आवाज़ से बदनाम हो जाए। तुम्हारी सादगी देखकर झुक क्या गए, तुमने तो हमें गिरा हुआ समझ लिया।