Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 50000 55003 0 Hindi :: हिंदी
मेघ तू अब तो बरस जा अन्नदाता के आँसू पहुँच जा, उम्मीदों के इस सफर को तू ना अब ऐसे सूना कर जा, बंजर पडी इस जमीन को मेघ तू अब भी बरस कर सोना कर जा, अन्नदाता के आँसू पहुँचकर मेघ उनकी झोली को खुशियों से भर जा, मेघ तू अब तो बरस जा अन्नदाता के आँसू पहुँच जा। मेघ तेरे बरसते ही चारों ओर हरियाली की छडी लग जाऐगी, अन्नदाता के घर में भी त्यौहारों सी खुशियाँ छा जाऐगी, गिरवी पडी है जमीन किसी की कोई लगान भी नहीं चुका पा रहा है, तेरे बरसने के इंतजार में देश का अन्नदाता अभी तक सुख-चैन से भी नहीं सो पा रहा है, मेघ तू अब तो बरस जा अन्नदाता के आँसू पहुँच जा। नदी नाले भी मेघ तेरे नहीं बरसने पर विरान से हो गये हैं, तेरे बरस ने के इंतजार में पृथ्वी के यह खुबसूरत नजारे नदी नाले भी बदसूरत से हो गये है, अब तो मेघ तू फिर बरस कर इन सब को आबाद कर जा, कलकल की बहती ध्वनि के स्वर से फिर तू इन नदी-नालों को गुंजायमान कर जा, मेघ तू अब तो बरस जा अन्नदाता के आँसू पहुँच जा। मेंढक, मगरमच्छ, कछुआ भी मेघ तेरे बरसने के इंतज़ार में रहते है, तेरे बरसते ही वह अन्दर से बहुत मुस्कुरा कर तुम्हें धन्यवाद देने लगते है, मेघ नहीं बरसते हैं जब समय पर तो खुशियाँ मातम में मिल जाती है, किसी अन्नदाता की तो मेघ तेरे नहीं बरसने पर जमीन तक बिक जाती है। मेघ तेरे नहीं बरसने पर अन्नदाता कर्ज में डूब जाते है, कर्ज नहीं चुकाने पर फांसी लगा कर जीवन को रसातल में ले जाते है, मेघ तू अब तो बरस जा अन्नदाता के आँसू पहुँच जा।