संदीप कुमार सिंह 17 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6797 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) नर नारी खाए दवा,सुख का मिले न भोग। दिन दिन बढ़ता जा रहा,भीषण मय अब रोग।। दिन दिन बढ़ता जा रहा,महँगाई की मार। मध्यम और गरीब अब,हैं अति अति लाचार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....