जितेन्द्र जय 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद #jitendra_jay #neta_ji_fir_se_badlne_lage_hai #poetry #like #india #trend 16471 0 Hindi :: हिंदी
पाकर कुर्सी संवरने लगे हैं नेता जी फिर से बदलने लगे हैं किये थे वादे जो भी तुमने, एक भी न पूर्ण किया। मैदा को भी पीस पीसकर, नेता तुमने चूर्ण किया।। करिया का डसा बच भी जाये, इनका डसा मांगे न पानी। सिर पर टोपी झूठी बानी, नेता जी की यही निशानी।। भर भरके फुफ़कार डसने लगे हैं। नेता जी फिर से बदलने लगे हैं।। आयी देश पर जब मुसीबत, खादी का मुंह हो गया काला। स्कूल-कॉलेज बंद पड़े हैं, मधुशाला का खुल गया ताला।। आँख मूंद के किया है तुमने, खूब घोटाले पर घोटाला। गरीब बेचारा गरीब हो गया, अमीरों का भर गया झोला।। विकास के नाम पर लूटने लगे हैं। नेता जी फिर से बदलने लगे हैं।। छात्रों का हाल बुरा है, निजीकरण का हो रहा खेला। रोजगार का बंद पिटारा, आजतलक न तुमने खोला।। तुम लड़े अपने हित की ख़ातिर, शोर हुआ राष्ट्रवादी का। छात्रों ने एक मांग रखी तो, नाम दे दिया उग्रवादी का।। देश के भविष्य पर डंडे बरसने लगे हैं। नेता जी फिर से बदलने लगे हैं।। नौजवान सारे भटक रहें, जनता बेचारी रोड पर खड़ी है। किसान फ़सल उगाये या बचाये, कैसी विपदा आन पड़ी है।। विश्वगुरु बनने से पहले, देश के हाथों में कटोरा थमा दिया। सपना बस सपना रह गया, शमा जलने से पहले बुझा दिया।। जलते चराग अब सुलगने लगे हैं। नेता जी फिर से बदलने लगे हैं।।