बासुदेव अग्रवाल 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक पादाकुलक छंद, मत्त समक छंद, विश्लोक छंद, चित्रा छंद, वानवासिका छंद 65578 0 Hindi :: हिंदी
पादाकुलक छंद "राम महिमा" सीता राम हृदय से बोलें। सरस सुधा जीवन में घोलें।। राम रसायन धारण कर लें। भवसागर के संकट हर लें।। आज समाज विपद में भारी। सुध लें आकर भव भय हारी।। राम दयामय धनु को धारें। भव के सारे दुख को टारें।। चंचल मन माया का भूखा। भजन बिना यह मरु सा सूखा।। अवनति-गर्त गिरा खल कामी। अनुचर समझ कृपा कर स्वामी।। सरल स्वभाव सदा मन धारें। सब संकट से निज को टारें।। शीतल मन से रघुपति भजिये। माया, मोह, कपट सब त्यजिये।। मिथ्याचार जगत में भारी। इससे सारे हैं दुखियारी।। सद आचरणों का कर पालन। मन का पूर्ण करें प्रक्षालन।। राम महाप्रभु जग के त्राता। दुख भंजक हर सुख के दाता।। नित्य 'नमन' रघुवर को कीजै। दोष सभी अर्पित कर दीजै।। *********** पादाकुलक छंद विधान - पादाकुलक छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह संस्कारी जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट:- चार चौकल हैं। चौकल = 4 - चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं। (1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते। (2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता। एक प्रकार से देखा जाय तो पादाकुलक छंद प्रसिद्ध चौपाई छंद का ही एक प्रारूप है। चौपाई छंद में चार चौकल बनने की बाध्यता नहीं है जबकि पादाकुलक छंद में यह बाध्यता है। भानु कवि के छंद प्रभाकर में पादाकुलक छंद के प्रकरण में इससे मिलते जुलते कई छंदों की सोदाहरण व्याख्या की गयी है। यहाँ मैं चार छंद उदाहरण सहित प्रस्तुत कर रहा हूँ। (1) मत्त समक छंदविश विधान - मत्त समक छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 9 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए। अतुलित बल के हनुमत स्वामी। रघुपति दूत गगन के गामी।। जो इनका जप नित करता है। भवसागर से वह तरता है।। (2) विश्लोक छंद विधान - विश्लोक छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 5 वीं और 8 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए। पीड़ित बहुत यहाँ जन रघुवर। आहें विकल भरें हो कातर।। ले कर प्रभु तुम अब अवतारा। भू का हरण करो सब भारा।। (3) चित्रा छंद विधान - चित्रा छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 5 वीं, 8 वीं और 9 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए। गुरु की कृपा अमित फलदायी। इसकी महिम सकल जन गायी।। जिसके सिर पर गुरु का हाथा। पूरा यह जग उसके साथा।। (4) वानवासिका छंद विधान - वानवासिका छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त 9 वीं और 12 वीं मात्रा सदैव लघु रहनी चाहिए। सरयू तट पर बसी हुई है। विसकर्मा की रची हुई है।। अवधपुरी पावन यह नगरी। राम-सुधा से लबलब गगरी।। ****************** बासुदेव अग्रवाल 'नमन' © तिनसुकिया