AJAY KUMAR JOSHI 12 Feb 2025 कविताएँ समाजिक जोश, आध्यत्म, आध्यात्मिक, जीवन, आत्मविश्वास, आत्मचिंतन, माया, मोह 6107 0 Hindi :: हिंदी
पल पल जीवन खत्म हो रहा तू क्यो करता फिर तेरी मेरी। चंद साँसों का जीवन घट में पता न कोनसी रात निबेरी ।। आहत होंगे रिश्ते नाते सब धरा यही रह जायेगा। अंदर आता जाता प्राण जब बाहर ही रह जायेगा ।। ये अवस्था सब की जानो शरीर नष्वर है ये तुम मानो चिंतन अब तो करना होगा इसको पा कर क्या पाया || तो सुन रे मानव तुज को मैं बस इतना समझाऊँ । जीवन सारा माया का खेला तेरा कैसे मोह छुड़ाऊं।। देह रूपी धनुष है तपश्या जिस की टंकार मन रूपी जो बाण है करे शत्रु संघार काम क्रोध लोभ मोह है शत्रु ये है जीवन जंजाल जो इतना तूने जान लिया फिर हो जाय कल्याण जो साधे शत्रु को प्रबल वेग टंकार क्षण में ही प्रकट हो जीवन मे झनकार।। Aj Alway: सत्य की खोज में