संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 61416 2 5 Hindi :: हिंदी
बहुत ही मनमोहक बहुत ही लोमहर्षक। देवी प्रकृति आप ही हो दुवा और दवा । आप ही हो अविष्कार और आप ही हो विनाशक। शुन्य से लेकर अनन्त तक, देवी प्रकृति आपकी ही छवि विद्यमान है, आकार में और निराकार में। आप ही करती हो सबों, के सपने सकार । मैं बालक बड़ा ही मूर्ख और अग्यानी हूं, चाहता हूं आपकी असीम कृपा और चाहता हूं पूरी कर दें सारी हमारी मन्नतें। मां प्रकृति दूनिया_जहान, आपकी ही के गोद में, पलती और बढ़ती है। मां प्रकृति आपके बीना तो ये जीवन सम्भव ही नहीं। आप ही हो दृश्य और अदृश्य में भी, सर्वत्र_सर्वज्ञ_सभी के माता भी, आप ही हो। हम सारे जीव आपके ममता के लिए प्रतीक्षा में हैं, सो हे माते अपने असीम ममता के चादर हमसबों को ओढ़ाकर हमें सुरक्षित और निरोगी बनाएं। हे माता प्रकृति_हे देवी प्रकृति आपकी सदैव हमसभी, जयजयकार करता रहूं, ऐसे आशीर्वाद से हमें फलीभूत करें। चिंटू भैया
2 years ago
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I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....