Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक 52258 0 Hindi :: हिंदी
संस्कृति से खुलेआम खेल रहा है इंसान, चकाचौंध की दुनिया में जाकर भुल रहा अपनी पहचान, संस्कृति अब इंसान से नहीं बच पा रही है, इंसान के दिल में अब पश्चिमी संस्कृति जो भाती जा रही है । ताप-तपस्या ओर बलिदानो की इस संस्कृति पर सूतक जो लग गया है, भाई-बहिन का प्यारा रिश्ता भी अब हर रोज शर्मसार जो होता जा रहा है, पश्चिमी संस्कृति का यह रंग दिनों-दिन जो हम पर चढता जा रहा है, संस्कृति से खिलवाड़ करके जो खेल हमारे द्वारा पल-पल जो खेला जा रहा है । मान-मर्यादा की यह संस्कृति अब ना बच पायी है, जिस्म दिखाने के चक्कर में कपडों की मर्यादा भी मिट आयी है, संस्कृति पर यह प्रहार दिनों-दिन बडता ही जा रहा है, इंसान अपनी संस्कृति को भूलकर मदिरा-पान ओर वेश्यावृत्ति में जो मरता जा रहा है। भजन ओर गीत अब दिनों दिन मिटते ही जा रहे है, पश्चिमी संस्कृति के गानें जो इंसान की जबान से गुनगुनाये जा रहे है, पश्चिमी संस्कृति की दुनिया में हम अब हर पल खोते जा रहे है।