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सोचो हिन्द के हिंदुस्तानी

RAJESH KUMAR PAL 08 Apr 2023 कविताएँ समाजिक #Gaaruntalkies 15443 0 Hindi :: हिंदी

सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
नागपंचमी भूल गए हैं, वैलेंटाइन आबाद है;
सभ्य सनातन को जीने से अब कितना कतराते हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद हैं

नहीं पता है लोहड़ी हमको, गोधना का अब पता नहीं;
छोड़ दिए सब संस्कृति अपनी, खिचड़ी हमको याद नहीं,
गुड मोर्निंग का पता है सबको, सूर्योदय मेरा गया कहाँ,
हाय, हाय करते हाल पूछते; बाय बाय को बेताब हैं...
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद हैं

दाल-भात छूटा है हमसे बर्गर, चाऊमिन खाते हैं,
ताल तलइया छूटी हमसे, डिस्को- डाँसिंग जाते हैं;
साँझ नहरिया ढूँढ रही है, अपने बेर-टिकोरा को,
हम टोकन लेकर खड़े हुये हैं नम्बर सबको याद है;
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद है;

शेष बची जो दुनियादारी, कहाँ निभा अब पाते हैं,
नानी टूक टुक राह निहारे, ननिहाल कहाँ अब जाते हैं,
भोर हुआ मैं जगा नहीं, उजियारे का पता नहीं,
और काल कोठरी बंद पड़ी है, नींद मेरी आबाद है,
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद है;

राजेश कुमार पाल

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