संदीप कुमार सिंह 18 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगे। 4156 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_मुक्तक छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" तेरी क्या औकात है,पहने हुए नकाब। बातें भी बेकार है,रखता नहीं जवाब। मैं तो हूं अब शेर दृढ़,खाता हूं नित मांस_ रहो होश में यार अब,जीना करूं खराब। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....