Trishika Srivastava 30 Mar 2023 शायरी अन्य तेरे मेरे दरमियाँ / कितने चेहरों से शराफ़त के / किसी से कुछ न कहा/ मेरा ग़म बाँटने / ज़मीर बेच चुके हैं 100073 0 Hindi :: हिंदी
(1). हमारे दरमियाँ दीवार है क्या? तेरा मेरा मिलना दुश्वार है क्या? इक-इक साँस मुझे बोझ लगती है, तू भी मेरे बिना बे-क़रार है क्या? (2). कितने चेहरों से सराफत के नक़ाब उतर जाते हैं जब घर के सभी अज़्दाद गुज़र जाते हैं (3). किसी से कुछ न कहा, हर हालात सहते गए हम तक़दीर की लहर जहाँ ले गई, वहाँ बहते गए हम (4). मेरा ग़म बाँटने हर रात चला आता है चाँद मूझ से करने मुलाक़ात चला आता है (5). ज़मीर बेच चुके हैं, गिरवी रखी ख़ुद्दारी है जिसके पास दौलत ज़ियादा है, उसी से रखते रिश्तेदारी हैं — त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’ कानपुर (उ. प्र.)