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सजने बाले-महफ़िल में सजने बाले आज महफ़िल सजाते हैं

Rupesh Singh Lostom 07 Sep 2023 शायरी अन्य सजने बाले 13725 0 Hindi :: हिंदी

सजने बाले 
महफ़िल में सजने बाले आज महफ़िल सजाते हैं 
बाजार में बे मोल चीज आज बिक जाते हैं 
गुलाब कहा आज गुलशन में खिल पता हैं 
आज तो गुलाब ही गुल खिलाते हैं  
मनचला भवरा यु ही फिरता हैं मारा मारा 
अब कहा तितलियाँ पंख फैला उड़ पाती हैं 

अब पंक्षी कहा बागो में बेख़ौफ़ चहचहाती हैं 
बंद कमल के पंखुड़ियों में भवरा कहा रह पता हैं 
कलियाँ खिलने से पहले ही मुरझा जाती हैं 
अब कहा फूलों पे भवरा मड़राता हैं  

सब बदल गया रंग बिखर गया 
अब रात भी कहा रात होती हैं 
आदमी बेकार फिरता हैं मारा मारा 
दिन का तो चलन ही बदल गया 

आज चरित्र का चित्रण हो रहा हैं पल पल 
यहाँ चित्र का भी आज चरित्र बदल रहा 
तस्वीर बनके टंगे हैं दीवार पे धूल में लिपटे 
जिसने कभी बक्त को भी हराया था अपने जिद से

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