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Shreyansh kumar jain

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My Articles

हिन्दी भाषा नहीं मेरी माँ का यह एक स्वरूप है, नफरत भरी इस दुनिया में मोहब्बत का एक रूप है, समां बांधा है इसने मेरे दिल के हर एक कोने में, read more >>
संस्कृति से खुलेआम खेल रहा है इंसान, चकाचौंध की दुनिया में जाकर भुल रहा अपनी पहचान, संस्कृति अब इंसान से नहीं बच पा रही है, इंसान के दि read more >>
दिन-दोपहरी कन्धों पर बोझा लेकर में गाँव से शहर को आता हूँ, मेरी बचपन की ना जाने कितनी विरासत में गाँव छोड़कर आता हूँ, माँ-बाप का प्यार नह read more >>
सब टूट गये सब छूट गये, सपने सारे छूट गये, अपने ही जब बेकरार हुए, सपनो के सारे चक्कर छूट गये । जिन्हें समझा हमने अपना वह पराये होकर छूट गय read more >>
लौहा हूँ मैं अभी मुझे सोना बनकर दिखाना है, इन पर्वतों की अकड तोड़कर मुझे रास्ता बनाना है, सपनो को अब देखा है तो पूरा करके दिखाना है, अपने read more >>
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