आकाश अगम 30 Mar 2023 ग़ज़ल अन्य #Ghajal #ग़ज़लें #शायरी #phone #आकाश अगम #अल्फ़ाज़-ए-दिल 104542 0 Hindi :: हिंदी
मैं किसी रोज़ हार जाता हूँ बैठ कर गीत गुनगुनाता हूँ।। कल मेरे पास उसका फ़ोन आया ये मैं बातें फ़क़त बनाता हूँ।। लोग कहते हैं चुप रहो बेटा मैं बुरा हूँ जो बोल जाता हूँ ।। सीख देता प्रकृति का कण कण है सोच यह शूल मैं उगाता हूँ।। मानता ही नहीं कोई मेरी क्योंकि मैं भूल कर लुटाता हूँ।। मैं गया ही नहीं पुकार आयी वो न आयें जो मैं बुलाता हूँ।। ********************** मैं अलग सबसे जीव हूँ यारो क्योंकि मैं भी अदीब हूँ यारो।। बैठ नज़दीक भी नहीं पाते क्या मैं इतना अजीब हूँ यारो।। मानते जो नशीब को अफ़वाह मैं उन्हें क्यों नशीब हूँ यारो।। दो की नमकीन एक है रुपया आज कितना ग़रीब हूँ यारो।। वो अगर है रक़ीब रिश्ते में मैं भी उसका रक़ीब हूँ यारो।। **************** अंधे को जब सब कुछ दिखला जाता है आँख नहीं झपकाता पगला जाता है।। भले करो मंजूर न, पर मत फेंको फूल प्यार से लौटा देने में क्या जाता है।। मेरे दिल को थोड़ा सुकूँ मिलेगा ग़र एक शेर सुन लेने में क्या जाता है।। काँटे को कहते हैं चुभता है लेकिन काँटा भी पैरों से कुचला जाता है।। 'अगम' शायरों को रोको जग से पहले शेर प्रेम पत्रों में सिमटा जाता है।। ********************* क्या रोना क्या नई कहानी है भैया सबको अपनी रात बितानी है भैया।। मिला न सुनने वाला जब सब कहना था अब मुझको हर बात छुपानी है भैया।। बाप की पूँजी चार दिवारें सोख गयीं सुत की चिंता छत बनवानी है भैया।। वो भवनों को तोड़ भवन निर्माण करें देखो तो कितनी नादानी है भैया।। *********************** दुख का रोना रो कर हर घर बन जाओ सबकी नज़रों में बेचारे अच्छा लगता है ? जिसको समझाया था गिरने उठने में अंतर वो टाँगों में डंडा डारे अच्छा लगता है ? माना वो अपना दुख हँस कर बाहर करता है पर मैय्यत में दाँत निकारे अच्छा लगता है ? जिसकी नज़रों में अपनी छवि छोटी दिखती हो 'अगम' तुम्हें जब वही निहारे अच्छा लगता है ? *********************** रूह था मेरी वो सँग में जब खड़ा लगता नहीं कोई भी खंजर घुसा दो अब बड़ा लगता नहीं।। आज आधी रात आया उस कली का ख़्वाब फिर ध्यान पलकों है कहाँ, पहरा कड़ा लगता नहीं।। बोलना, हँसना, चिढ़ाना मैं गया हूँ भूल सा तुम बताओ क्या अभी भी मैं मरा लगता नहीं।। आज मन भर कर बहा है ख़ून आँखों से मेरी मर्ज़ी-ए-वालिद मग़र ये हादिसा लगता नहीं।। पास उनके है ही क्या जिसकी फ़िकर उनको चुभे है हमारी भूल , उनका दबदबा लगता नहीं।। झूम कर दिखलाओ चाहे मुस्कुराओ तुम मग़र कर रखी पॉलिश , सजर सचमुच हरा लगता नहीं।। कुछ बताता हूँ न उनको, सोच कर , बोलें न ये आपका ये हाल हमको अनसुना लगता नहीं।। दूर मत जा दोस्त, भाई, यार, धड़कन, जाँ, ख़ुशी तू बता दे तू हमारा और क्या लगता नहीं।। ********************* दरार पड़ती गयी असलियत बता न सके वो हमसे और उम्मीदें भी फिर लगा न सके।। वो आ रहे थे , सजाया था हमने क्या क्या मग़र बस उनका मन न हुआ और फिर वो आ न सके।। था चाहता ये दिल-ए- बेक़रार साथ कोई हम अपने आप को कुछ पल भी पर रुला न सके।। लिखा तो हमने भी होता ग़ज़ल में दर्द बहुत यही तो दुख है कि हम अपना दिल दुखा न सके।। न डाले रोशनी मुझपे यहाँ पे सूर्य तभी नज़र में आके भी उनकी नज़र में आ न सके।। ************** और कुछ मैं न करूँ गोलियाँ भरने के सिवा मुझको आता ही क्या है मारने मरने के सिवा।। अब तो दुश्मन ही बना जा रहा महबूब मेरा कुछ न अच्छा लगे गलियों में गुज़रने के सिवा।। मेरे दिल को न छुओ तुम ये बहुत चटका है और बाक़ी न बचा कुछ भी बिखरने के सिवा।। माफ़ कर दे मेरी महबूब मुझे क्या मैं करूँ धार में मुझको सब आता है उभरने के सिवा।।