Afsana wahid (moin raza ghosi) 12 Jun 2025 ग़ज़ल दुःखद Afsana wahid, poetry, artikal, story,shiry 4916 1 5 Hindi :: हिंदी
1. फना के बाद मेरा आग़ाज़ ही मुकम्मल तब होगा, जब मेरे जिस्म से मेरी रूह फ़ना होगी... ना पूछ मेरी तन्हाई का सिला क्या होगा, ना सोच कि बाद-ए-सितम क्या होगा, बस इतना जान ले, ऐ हमसफ़र-ए-ख़याल, जहाँ ख़त्म होगा जिस्म, रूह वहीं से लमकां होगा। मैं हर साँस में एक सजदा थी, मैं हर दर्द में एक इबादत थी, जिस दिन ये जिस्म मिट्टी बन गया, उस दिन मेरा असली तआरुफ़ शुरू होगा। 2. जिस्म से रूह तक मेरा आग़ाज़ ही मुकम्मल तब होगा, जब मेरे जिस्म से मेरी रूह फ़ना होगी... चाँदनी रातों में जो ख़ामोशी बोलती है, वही मेरी आवाज़ है — जो सिर्फ़ रूह महसूस करती है। मेरा वजूद तो सिर्फ़ एक साया था, अस्ल तो मैं थी… जब नाम भी मेरा ख़ामोश था। ना था कोई मंज़िल का पता, ना थीं राहों में रौशनी, मगर हर क़दम पे तेरे इश्क़ की महकती थी एक नरमी। मैं जिस्म के आँगन से रूह की दहलीज़ तक चली, फिर ख़ुद को एक रौशन दर्द में ढलती देखी। मिट्टी से बनी थी, मिट्टी में लौट जाऊँगी, लेकिन मेरे जज़्बात चाँद की रौशनी में छुप जाएँगे। और जब कोई दिल से पुकारेगा मेरा नाम, तो उसकी साँसों में एक अजनबी सा सुकून बन के चली आऊँगी... क्या ज़रूरत है आईने की, जब रूह ने रूह को पहचान लिया हो? फ़ना होने का डर तब होता है, जब ज़िंदगी सिर्फ़ जिस्म तक महदूद हो... मुझे तो अब रास्ता दिख गया है — वो रास्ता जहाँ से हर दुआ उठती है, वो रास्ता जहाँ हर इंतज़ार का सिलसिला टूट जाता है, और सिर्फ़ ख़ुदा रह जाता है… और मैं — सिर्फ़ उसकी एक ख़ुशबू।
3 weeks ago