SANTOSH KUMAR BARGORIA 30 Mar 2023 कहानियाँ दुःखद इस कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि अभी तक तो मैं खुद से ही बस शिकवा करता रहा पर इस दर्द को अब और नहीं छिपा पाया क्योंकि वह दर्द ऑखो के रास्ते ऑसू बनकर बह चली थी जिससे जवाने को मेरे दरे के बारे में पता चल गया । 49030 0 Hindi :: हिंदी
करते रहे हम शिकवा, खुद से ही अपनी लेकिन । अफसोस जवाने से दर्द, हम और छिपा ना पाए ।। अब तक छिपा रखा था, जिस दर्द को सीने पे । उस दर्द को संजोकर, हम और रख ना पाए ।। छलक ही पड़ा वो दर्द, ऑखो के रास्ते फिर । होंठों पे लिए जैसे, उस दर्द की थी आहें ।। कोई समझ सका ना उस दर्द को मेरे । सुनकर वो हस रहे थे, ले मंद -मंद मुस्काने ।। अपनो के बीच जैसे, असहाय हो चुका मैं। बुनते रहे मेरे अपने, मुझ पर ही ताने बाने।।2।। 🙏धन्यवाद 🙏 संतोष कुमार बरगोरिया --------------------------------- (साधारण जनमानस)
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