मकवाना संजय 30 Mar 2023 कहानियाँ दुःखद Emotional heart touching story, tragedy story 94084 0 Hindi :: हिंदी
अंधकारदीप जलाते हों....? भगवान अंशुमाली आपनी आखरी साँस ले रहै थे। लगता था कि कुछ ही क्षणो में अपनी जीवनलीला समेट लेंगे। उसके शोक से सारी प्रकृति भी अधमुई होकर शांत पडी थी। पंच्छी उसके वियोग में प्रलाप-विलाप कर रहै थे। पेड-पौंधे भी मौन होकर ईश्वर से उसके लीए प्रार्थना करते मालुम होते थे। सहसा मेरा ध्यान भंग हुआ और मेरी कलम रुक गई; नीचे शोर हो रहा था। मानव सहज कुतूहलवृत्ति से मैंने मेरी अट्टारी से नीचे देखा। नीचे एक औरत एक नन्हे बच्चे को मारपीट रही थी। बच्चे की चिल्लाने की आवाज सुनकर एक स्त्री सामने की झोंपडी से दौडी आ रही थी। मैं सारा मामला ताड़ गया। इस सोसायटी के सामने ही एक भिखारीन की पर्णकुटी थी। पर वह राम की पर्णकुटी जैसी नहीं थी, ये तो उंचे-उंचे सिमेंट के जंगलो के बीच में बनी थी। लोगो के फैंके हुए फटे कपडे और कुडादान में से उठाये चिंथडो को पतली कमजोर लकडियों से बने अस्थिपिंजर पर डालकर बनाई गई थी। इस सोसायटी की इकलौती कुटिया थी, इसीलिए हम सबकी नजर में चुभती थी। मैं नीचे उतरकर तमाशा देखनेवाली ईश्वर की बनाई उस अनमोल प्रजाति में शामिल हो चला। जैसे जनमेदनी को देखकर नेता का उत्साह दुगुना हो जाता है, उसी तरह यह औरत बडे मुँह से चिल्ला रही थी, और हम लोग चाव से सुन रहै थे; देखो भई जमाना कितना खराब हो गया है ! हमने समजा कि बिचारे गरीब लोग है, यह सोचकर यहा रहने दिया, मगर गरीब चोर होते है यह आज मालुम हुआ! क्या हुआ ? देखनेवालो में से कोई बोला। ये भिखारीन आपने बच्चे से चोरी करवाती है। आज मेरे पति दिपावली के शुभ अवसर पर पटाखे और मिठाई लाये थे। ये बदमाश सामने ही खेल रहा था, देख लिया; ड्रॉईंगरुम में रखी थी। वहा से गायब हो गई। हाय! हाय...! इतना सा बच्चा चोरी करता है। भीड के बडे मुख से धिक्कारे बरसने लगी। असंख्य लाल-लाल आँखे माँ-बेटे को घूरने लगी। उसमे से कोई बोला; “लोगो का विश्वास गरीबो पर से यूँ ही नहीं उठ गया। ये लोग अपने बच्चो को चोरी के संस्कार देते है।’’ दुसरे महाशय ताडुके “इसीलिए आज कोई भी गरीबो पर दया नहीं करता।” एक और व्यक्ति दयाधर्म दिखाते हुए बोला! “हम तो इस पर दया कर कभी पैसा तो कभी खाना देते ही है, फिर भी ये हरामखोर हमारा ही बुरा करते है।’’ सबका तिरस्कार-गलियाँ सहती हुई वह भिखारीन हाथ जोडकर खड़ी थी, और उसका दूधमुहा बच्चा उस औरत की चुंगल में फंसा था। और वह मेडम उसके गाल-बाल नोचती हुई धमकाती हुई बोल रही थी, क्यो बदमाश पटाखे और मिठाई कहा छुपाये है? वह बिचारा चित्कार करता हुआ अपने को छुडाकर माँ की गोद में छुप गया। छोटी आंखो से आँसू की बडी धारा नाक से बहती हुई धारा में मीलकर मुँह में जा रही थी, और उसे वह अपने हाथो से रोकने का व्यर्थ प्रयास कर रहा था। मेल से छने मुँह पर रुदन की हिचकियाँ रुकती नहीं थी। उसी वजह से व्युत्कर्मिक रुप से कुछ बोल रहा था, पर उसकी भाषा कौन समझ सकता था ! उसकी माँ ने अपने से दूर करके बच्चे को झकझोर ने लगी। बोल, मिठाई-पटाखे तुने लीये है? बता ! मार की वजह से फुले हुए गालो को दिखाते हुए वह औरत बोली, उसे क्या पूछती है? उसीने लीए है, देखो न मिठाई खा कर गालो में चरबी चड गई है ! इस वाक्य से उस माँ की आत्मा जल गई, उसने कंपते हुए हाथो से शायद पहली बार अपने बच्चे के कपोल पर तमाचे लगा दीये। बोल, पटाखे कहा रख आया? बता मिठाई तुमने खाई? बच्चे के गले से जो अस्पष्ट भाषाशब्द नीकल रहै थे, वो भी रुदन में अद्रश्य हो गये। अब तो वहा से केवल अ..आ.. कंठ्यवर्ण ही नीकल रहै थे। वह ऐसे नहीं बताएगा लाओ मेरे पास, कहती हुई वो औरत बच्चे की तरफ लपकी। बच्चे की माँ सहम गई! पर वह क्या करती? वो न मारे इसीलिए खुद कलेजा मजबुत करके अपने बच्चे को पीटने लगी; बताता है कि नहीं मिठाई फटाके कहा छुपाऐ? मार खाते बच्चे पर सब आलोचना कर रहे थे। बच्चा बीचारा अधमुआ सा हो गया, पर कोई कुछ बोलता न था। अब मुझसे न रहा गया। मेरी हीनभावना ने उसे छूने से तो रोक लीया पर बोले बीना नहीं रहा गया। मैं बीच में आकर बोला, अब रहने दीजिए बच्चे को मार डालेंगे क्या !? बच्चो का मन चंचल होता है। उसे जो चीझ पसंद आती है उसे वह ले लेते है, चाहे वह चोर का बच्चा हो या राजा का। बच्चो के स्वभाव एसे ही होते है। अब जाने भी दो। वह औरत मेरी तरफ घुरकी, जब ये आपके घर चोरी करेगा तब यह तत्वज्ञान की बाते अपने कानो को सुनाना। मेरी वजह से उस भिखारीन को बोलने का मौका मील गया, “माफ करो बहनजी, मैं आपकी मिठाई और पटाखे के पैसे चुका दुंगी।’’ वो औरत ताडुककर बोली, मैं तुज जैसी भिखारीन से पैसे लुंगी। बडी आइ पैसेवाली, किसी ओर के चुराए पैसे हमें पचेंगे! सोसायटी के लोग जमा हो रहै थे। उनके लीए एसे वाक्यात त्यौहार से कम नहीं होते। एसा नहीं कि सब लोग निष्ठुर थे, कुछ लोग दयलु भी थे, जिसको एसे लोगो के प्रति हमदर्दी होती है पर वह दिल में ही रहती है, और ज्यादतर लोग संचयात्मक होते है इसीलिए चुप ही रहते है, और उस औरत को देखकर किसी की बोलने की हिंमत भी तो नहीं होती थी ! जब भीड़ खास्सी हो गई तब जाके वह औरत अंत की ओर मुडी; ऐसे भिखारीयो को हमारी सोसायटी में रहने ही नहीं देना चाहिये। इन लोगो के कर्मो पर तो भगवान भी कोपाइमान है। ऐसे पापी को वो दंड देते ही है, इसीलिए तो नर्क की जिंदगी दी है ! अब की बार इस सोसायटी में कही भी चोरी हुई तो तुम्हारी खैर नहीं, यहा से नीकाल देंगे: समजी ! दिवाली का त्यौहार बरबाद कर दिया डायनने.... एसी बबडाट करती हुई वह चली गई। सबको उस औरत की बात सही लग रही थी, क्योंकि उसने ईश्वर को साक्षी बना लीया था। इसलीए ज्यादातर लोग इस भिखारीन को धिक्कारते हुए जा रहै थे, और बच्चे की माँ हाथ झोडे खडी थी, मानो उसे आज क्षमा की भी भीख मांगनी पड रही हो ! सब चले गये तब वह भी बच्चे को वहा रोता हुआ छोडकर चली गई। आखिर; मैं भी मन में इस घटना की आलोचना करता हुआ मेरी बाल्कनी में जाकर हाथ में कलम लेकर लिखने को तैयार हुआ। पर मेरी नजर उस बच्चे पर गडी थी। वह अब भी हिबकियाँ लेता हुआ रो रहा था। रजनी आकाश पर काला रंग पोतने लगी तभी शहर ने दिपावली उत्सव मनाना शरु कर दिया। पटाखो की कान के पडदे फाड देनेवाली आवाजे आने लगी थी, लगता था की शहर पर बमबारी हो रही हो ! गगन में आतिशबाजीयाँ होने लगी। घर-घर दीपक जलाये जा रहै थे। सारा नगर आनंदोत्सव मना रहा था। पर उस झोपड़ी में अंधेरा ही था। उस बालक की माँ अपने हाथो में मुंह छुपाकर रो रही थी। उसे दुःख था कि उसका बच्चा चोरी करना सीख गया था। उसे कल की वह घटना याद आ गई: भोजन करते हुए कह रहा था, माँ मुझे फ़टाखे मिठाई ले दोगीन? उसे गोद में लेकर एक कौर खिलाते हुए अनजान बनकर बोली, क्यो? तुम्हे नहीं पता ! कल दिवाली है। सब नये कपड़े पहनेंगे। मिठाईया खायेंगे, और ढेरसारे पटाखे फोडेंगे। कुछ उदास होकर उसकी माँ बोली, बेटा ये त्यौहार हमारे लीए नहीं है। ये बडे लोगो का त्यौहार है। क्यो नहीं है? सामनेवाले सब लड़के मुझे चिढाते थे कि तुम क्या पटाखे फोडोगे ! तुम तो भिखारी हो। जब हम मिठाई खा रहै होंगे तब आना जुठन देंगे। मैं सब को दिखा दुंगा कि हमारे पास भी पैसे है। सबसे ज्यादा पटाखे फोडुंगा। उसके सामने ही मिठाई खाउंगा। किसीको एक दाना नहीं दुंगा। उसकी माँ चुप थी। माँ चुप क्यो हो, पटाखे और मिठाई ले दोगी? मुजे नए कपडे नहीं चाहिए, बोलो माँ ला दोगी? कुछ सोचकार वह कठोर स्वर में बोली, मेरा सिर मत खा, बतायान ये त्यौहार हमारे लीए नहीं है। उस दिन रुठकर-उठकर खाये बीना ही सो गया था। सब मेरा ही दोष है। मैंने उसे मिठाई- पटाखे ले दिये होते तो क्या वह चोरी करता? यही वजह है कि गरीबो के बच्चो को चोरी का ख्याल तुरंत आता है। मैं उसे अच्छे संस्कार दुंगी, और उसकी हर ख्वाईश पुरी करुंगी, ताकि वह चोरी करना न सीखे। वो अपने आप को दोष देती रही: क्यो मैंने उसे कुछ नहीं ले दिया! त्यौहार तो बच्चो के लिए ही बनाए है। कुछ पैसे चले जाने से क्या होता? दो-तीन दिन मुश्केली से गुजरते ओर क्या ! और इतिहास साक्षी है, गरीबो के घर में लक्ष्मीजी की आगतास्वागता नहीं होती इसलीए उनके घर में कभी नहीं टिकती ! मैंने थोडी सी लक्ष्मी मेरी झोपडी में बांध रखी है इसीलिए एसा हुआ। उस औरत ने सही कहा है। पिछले जनम में हमने बहुत पाप कीए होगे, तभी तो इस जनम में ऐसी दुर्दशा हुई। इस अवतार में कोई बुरा कर्म नहीं करना है, ताकि अगला जनम महलो में मीले, इसीलिए उस स्त्री के पैसे दे देने चाहिए, भले ही उसने मना किया हो। अगर वह लेने से मना करेगी तो उसके सामने फैक आउंगी, ताकि मेरे बच्चे को फिर से न मारे और चोर न बोले। वह उठकर कही पे छुपाए हुए पैसे निकालकर अपनी रोती हुई आंखे साफ करके सामनेवाली उस औरत के घर की ओर चली। वह उसे बाहर ही मिल लेना चाहती थी, पर वह आंगन में दीपक जलाकर अंदर चली गई थी। उस स्त्री ने हल्के कदमो से उनके आंगन में प्रवेश किया, मानो वह भी चोर हो। तभी मेरी निगाह उस पर पडी। मैंने सोचा ये भी चोरी करने जा रही है या फिर बदला लेने। मैंने उसे रंगेहाथ पकडने की सोचकर जटपट से नीचे उतरकर उसके पीछे चला। वह उसके दरवाजे के पास रुक गई थी। अपने आपको छुपाती हुई अंदर की आवाज सुन रही थी। मैं भी दीवार की आड मे छुप गया। अंदर से आवाजे आ रही थी, आज क्या हुआ था? पत्निः कुछ नहीं, उस भिखारीन के बच्चे ने हमारे मिठाई-पटाखे चुरा लीए। पतिः क्या ! पर मिठाई-पटाखे तो अलमारी में है। तुम्हे बताया तो था। पत्निः मैं जानती हूं पर ये भिखारीन यहा रहें वो मुजे पसंद नहीं, वो भी हमारे घर के सामने ! यह मुझे अच्छा नहीं लगता इसलिए मैंने उस पर चोरी का आरोप लगा दिया। पतिः तुमने अच्छा किया, इसे परेशान करे ताकि यहा से चले जाये। एक बार मेरे दोस्त ने भी कहा था कि आपके घर के सामने ये लोग ! ताज्जुब है आप यहा रहते है ! पत्निः इनकी वजह से सोसायटी के लोग भी हमें ओछी नजरो से देखते है। ये सुनकर उस गरीब स्त्री के मुह से आह ! तक न निकली। उस माँ के ह्रदय की दशा का वर्णन मेरी कलम नहीं लीख सकी ! उसके हाथ से गीरते पैसे मैंने देखे। मुझे सत्य का पुर्णज्ञान प्राप्त हुआ। उसने अपने बच्चे की तरफ तेजी से दौड लगाई। वो अभी भी वही पर बैठा था। आकाश में जगमगाती रोशनीयाँ देख रहा था। रंगबेरंगी आतिशबाजियाँ हो रही थी। इस कुतूहल से वह रोना भुल गया था। वह कुछ कदम दूर अपने बच्चे के पीछे रुक गई और अपने बच्चे को निहारने लगी। पछतावे के आंसुओ को रोकती हुई वह हल्के कदमो से अपने लाल के पास जाकर बेठकर सिर पर ममता का हाथ रखते हुए बोली, बेटा घर चलो। वह माँ के प्यार भरे स्वर को पहचान गया। गालो पर ठहरे हुए आखरी अश्रुओ को पोछते हुए बोला, माँ, मैंने मीठाई-पटाके नहीं चुराए। अब वह आंसुओ को रोक न सकी। उसे अपने कलेजे से लगाकर रोती हुई बोली, मैं जानती हुं बेटा, ये त्यौहार तो ठीक, अब तो ये दुनिया भी हमारी नहीं लगती !” अपने बच्चे को गोद मे उठाकर उसे चुमती हुई, रोती हुई, दुनिया को कोसती हुई अपनी अंधेरी झोंपडी में अद्रश्य हो गई। आकाश की झगमगाती रोशनी की एक भी किरण उस झोंपडी पर नहीं पडती थी, मानो अमावस्या की काली रात वही छुपी बैठी हो। मैं वही खडा ये सब देखता रहा। मेरी अंतरआत्मा से आवाज आई, क्या ! तुम इंसान हो...? और मैं उसका जवाब नहीं दे सका। कहानीकारः संजय आर मकवाणा भावनागर। 9586853070 डोलरीया ग्रुप प्राथमिक शाला, छोटा उदेपुर।