Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

पूर्णमासी का चांद - भाग- 01

AJAY ANAND 09 Apr 2023 कहानियाँ अन्य पूर्णमासी का चांद, सस्पेंस, थ्रिलर, डरावनी कहानी, प्रेम कहानी, पूर्वजन्म की कहानी, 8393 0 Hindi :: हिंदी

पूर्णमासी का चांद(  A2 )
_____

पूर्णमासी का चांद आज देर से निकल रहा था क्योंकि आकाश में काली घटा बिखरे हुए थे , दो दिल आपस में मिलने के लिए लालाइत हो रहे थे। यही वह रात होता जब रुक्मिणी अपने दिल पर लगाए हुए पहरे को हटा देती और मोहब्बत में आने वाले कल का भविष्य संजोती।
क्योंकि पूर्णमासी की रात रुक्मिणी के दिल में प्रेम का सागर उफान मारने लगता।
उसे भी पता नहीं कि ऐसा क्यों होता है? 
अपने बेड के बगल में रखा हुआ टेबल पर राधा कृष्ण की प्रतिमा की ओर देखा। जिसे अपने पास वह सदा रखती है।
ये हमें क्या होने लगता है कृष्णा? आखिर मैं उसकी तरफ क्यों खींचती चली जाती हूं? जितना वो मेरे नजदीक आता है उतना ही उससे मिलने के लिए मैं बेबस होने लगती हूं।
ना तो मैं उससे कभी मिली और ना ही मैंने कभी उसे ठीक से देखा है तो फिर ऐसा क्यों?
प्रतिमा कभी किसी से बात नहीं करते तो फिर रुक्मिणी से आज क्यों बात करेगा। वह मूकदर्शक की भांति रुक्मिणी को देख रहा है।
मुझसे बात नहीं करना है तो मत कर..! लेकिन बात तो बता दो..! उसका रिश्ता मेरे साथ क्या हैं? किस जन्म का है? क्या उसके दिल में मेरे लिए उतना ही जज्बात है जितना मेरे दिल में? मैं जानती हूं , तुम कुछ नहीं बोलने वाले..! 
दिवार पर टंगे हुए पुरानी घड़ी की टिक-टिक की आवाज रूक्मिणी को और भी मदहोश कर रहा था। उसके दिल की धड़कन तेज होने लगा था। शायद पहले मोहब्बत का असर वह जान चुकी थी। जो किसी पुराने दारु की तरह धीरे-धीरे असर होता है। उसके पास यहां कोई तो अपनी सहेली भी नहीं जिससे इश्क और मोहब्बत के बारे में ज्यादा जानकारी ले सकें और अपने दिल में दबी हुई जज्बात को कहकर बैचेन मन को शांत कर सकें। कभी वह खिड़की के पास तो कभी दरवाजे की ओर झांकती कि कहीं पिताजी की नजर उस पर नहीं पर जाए।
जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था , उसके चेहरे पर परेशानी उभरते जा रहा था।
अचानक बाहर जंग लगे हुए दरवाजे के खुलने की आवाज ने रुक्मिणी के परेशानी को खत्म कर दिया। वह अपने शाही पलंग से उठकर दौड़ते हुए खिड़की के पास गई।
कन्हैया का स्पष्ट रुप से शरीर नहीं दिखाई दे रहा था फिर भी वह समझ गई कि उसका महबूब ही है। वहीं जाना पहचाना खुशबू जिसके स्पर्श मात्र से ही रुक्मिणी कभी मदहोश हो जाती थी। अपने दिल पर हाथ रखते हुए ईश्वर को याद किया और सोफे पर जाकर बैठ गई। उसकी घबराहट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
बैचेनी में टेबल पर रखे हुए भरें हुए ग्लास का पानी एक ही घुंट में अटक गई।
कन्हैया का एक झलक भी मिल जाने से रुक्मिणी के बेचैन दिल को शकुन मिल जाता। तभी तो वह इस पूर्णमासी के चांद की रोशनी का इंतजार करती है। कन्हैया के पास रहते रुक्मिणी को ऐसा लगता कि कोई पूर्व जन्म का सम्बंध उसके साथ है। जो किसी कारण वश बिछड़ चुके हैं और इस जन्म में उसी का इंतजार है।
रात के अंधेरे में तो किसी की परछाई के अलावे कुछ नहीं दिखाई देता।
फिर भी उसे इस बात की संतुष्टि मिल जाता कि वह मेरे पास ही है।
रुक्मिणी बार बार अपनी खिड़की से झांकती और मन ही मन काली घटा के करतूतों को अपशब्द कह देती।
पर घटा सुनने वालों में से कहां था , उसे तो आज रुखे और सूखे जमीन को बारिश से भिंगाने का आदेश जो मिला था।
अपने शाही पलंग पर दो पल ठहरती फिर उठकर अपने प्रेमी कन्हैया की राह देखती , थोड़ी थोड़ी बारिश भी होने लगी और साथ ही साथ बिजली की चमक भी …
जहां बिजली की गड़गड़ाहट और चमक में कन्हैया भैंसों को नहला रहा था। वहीं रुक्मिणी उसे देख रही थी। कन्हैया इन सभी चीजों से अनजान जल्द काम खत्म करके जाने की सोच रहा था।
ऐसे ही बिजली की चमक में कन्हैया सरपंच की हवेली में भैंसों को नहला रहा था , जब बिजली की गर्जन होती तो भैंसें उछल-कूद करने लगती , पर उसके मजबूत भुजाओं में इतनी ताकत थी कि भैंसें खुद को असहाय महसूस करती, उस समय कन्हैया का सांवला बदन देख रुक्मिणी उस पर फिदा होते चली गई।
किसी की आहट सुनकर चौंकी और पीछे मुड़कर देखा तो उसके पिता सरयुग प्रसाद नारायण खड़े थे।
खिड़की तो लगा लो बेटी , हवा से तुम्हारे सभी पेपर बिखर गए हैं।
जी पिताजी ... कहते हुए रुक्मिणी पेपर को उठाने लगती है।
जाते हुए उन्होंने कहा था - बेटा जिंदगी को ऐसे बिखरने मत देना। ये पेपर तो समेट लोगे , पर बिखरे हुए जिंदगी को समेट नहीं पाओगे।
रुक्मिणी अपने पिता के बातों को समझ जाती है और उसने जी कहते हुए सर हिला दिया।
खिड़की से बाहर की तरफ देखा तो कन्हैया अभी भी भैंस को नहलाने में लगा हुआ था। काली घटा अब जा चुकी थी। चांदनी की रोशनी में कन्हैया का बदन दिखाने लगा था जो भींग जाने की वजह से ठंडी हवाओं के आने से कन्हैया थर-थर कांपने लगता।
उसने अपने मन में सोचा - पिता श्री , मेरे मनोभाव को समझ गए थे , इसलिए तो उन्होंने हमें आगाह करने की सोची।
उसने मन ही मन ठान लिया- नहीं ... मैं इन प्यार, मोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ने वाली , उन्होंने ठीक ही कहा , मैं कल ही पढ़ाई के लिए शहर चली जाउंगी। पर इस दिल का क्या करूं जो पूर्णिमा को हमारी धड़कनों को बढ़ा देता है।
_____
2

सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए रुक्मिणी का इंतजार कर रहे थे कि जल्दी से वह भी आए और खाना खाकर सोने के लिए चले जाएं।
रुक्मिणी की मां यशोदा बाहर की तरफ देखते हुए बोली - ऐसा लगता है कि आज बारिश मेरे गांव और हवेली को डुबो ही देगा।
हम तो सोच रहे हैं जल्दी से रुक्मिणी आकर खाना खा ले तो मैं अपने बिस्तर पर जाऊं पर .... रुक्मिणी की दादी बोल ही रही थी कि यशोदा बोल पड़ी - वो आ गई मेरी बिटिया रानी। 

अपनी सास की तरफ देखते हुए यशोदा बोली - आप तो हर वक्त मेरी बेटी को दोषी ठहराते रहते हैं।
मैंने ऐसा क्या कह दिया बहू , जो इतना बड़ा इल्जाम मेरे उपर लगा रही हो।
दोनों की बातों को बढ़ता हुआ देखकर सरयुग ठाकुर प्रसाद बोले - अब रहने भी दो , छोटे - छोटे बातों को ..... तुम दोनों कहां से कहां तक ले जाते हो।

रुक्मिणी आते ही बोली - क्या हुआ मां , इतना बहस किस बात पर हो रहा है।

कुछ नहीं बेटा , जल्दी से बैठकर खाना खा ले - यशोदा अपने बेटी को अपने पास बैठाते हुए कहा।
उसी वक्त….
मुंशी दौड़ते हुए आया और सरयुग ठाकुर प्रसाद  के सामने हाथ जोड़कर बोला - साहब , कल जो भैंसें चोरी हुई थी उसका पता चल गया है। गंगूराम ने वह भैंस चिंटू पहलवान को बेच दिया है आने वाले सप्ताह में काली पूजा के अवसर पर भैंसों की बलि दी जाती है‌‌ ठाकुर साहब,उसी समय चिंटू पहलवान से पूछा जाएगा।
अभी कोई फायदा नहीं है क्योंकि वह कहीं और छिपाकर रखा होगा। मुंशी एक ही सांस में कहते चला गया।
लो एक ग्लास पानी पी लो। अच्छी खबर लाए हो - ठाकुर साहब वहां रखे हुए ग्लास उठाते हुए मुंशी को देते हुए कहा।
मुंशी भी कुछ ज्यादा ही पियासा था। ठाकुर साहब के हाथ से लिया और सीधे मुंह में गटक लिया।
रुक्मिणी की ओर ठाकुर साहब देखकर बोला - नीच जाति के इंसान से हम हमेशा ही दूर रहते हैं। उसके बदन से दूर से ही दुर्गन्ध की महक आती है।
रुक्मिणी अपने पिता के भावों को समझ जाती है परन्तु नजरें नहीं मिला पाती। उसने मन में ही सोचा यह संवाद जरुर कन्हैया के लिए पिता जी ने कहा। अपने अपमान को वह बर्दाश्त नहीं कर पाई।
उसने अपने टेबल पर से उठते कहा - पिता श्री मैं कल ही शहर चली जाउंगी। मेरे जाने का इंतजाम कर दीजियेगा।

सरयुग प्रसाद के मुस्कुराते हुए चेहरे को रुक्मिणी की मां यशोदा देख कर कुछ समझ नहीं पाती है।
उसने रुक्मिणी की ओर देखकर बोली - अभी तो तुम्हारे छुट्टी के दिन भी पुरे नहीं हुए हैं और तुम ... जाने की बात कर रही हो।
जाने दो रुक्मिणी को , यशोदा .. इसका मन इस छोटे से गांव में नहीं लग रहा है - सरयुग प्रसाद हवेली से बाहर निकलते हुए कहा तो सरला देवी कुछ कह नहीं पाई।

अपनी बेटी रुक्मिणी को समझाते हुए कहा - क्या बात है बेटी? मैं जानती हूं, तुम्हें यहां मन लग रहा है। कुछ दिन से मैं देख रही हूं। तुम कितना खुश रह रही है। ऐसी कोई बात है तो बोलो तुम्हारे पिताजी को मैं समझा दूंगी परन्तु शहर जाने की बात मत करो। कई वर्ष हो गए हैं, तुम्हें गांव के मेले देखें हुए। इस साल तो उससे भी ज्यादा भीड़ लगने की उम्मीद है।
रुक्मिणी फिर भी खामोश थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे मां को सारी बातों से अवगत कराएं।
क्या सच्चाई जानने के बाद कन्हैया के प्रति इन्हें भी नफरत होने लगें।
रुक्मिणी अपने मां के पास से उठते हुए रोती हुई भाग गई।

यशोदा समझ चुकी थी कि इसके पिता ही कुछ कहें होंगे नहीं तो इस तरह से रोते हुए नहीं जाती परन्तु मैं ठाकुर साहब को कैसे समझाऊं कि हमारी तो एक ही बेटी है। उस पर इतना क्रोध करना सही नहीं।
रात के 12.00 बजने ही वाले थे। रुक्मिणी सोई हुई थी। बारिश थम चुका था। चांद पूर्ण आकार ले चुके थे। उसकी रोशनी रुक्मिणी के चेहरे पर बिखेर रहे थे।
रुक्मिणी बिछावन पर तड़प रही थी, क्योंकि पूर्णमासी की रात रुक्मिणी को एक बीता हुआ स्वप्न दिखाता है।


जो किसी ना किसी अनहोनी होने की संभावना को दर्शाता है। उसके माथे पर पसीने आने लगें। आंखें खोलने की कोशिश कर रही है मगर कोई उसे सच्चाई बताने की जिद किया हुआ है। उसका बीता हुआ कल या आने वाले भविष्य। यह तो आगे समय ही बताएगा।

क्रमशः अगली कड़ी में.....????

अजय आनंद , सुल्तानगंज , भागलपुर , बिहार
वाट्स एप - 8309024238

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

लड़का: शुक्र है भगवान का इस दिन का तो मे कब से इंतजार कर रहा था। लड़की : तो अब मे जाऊ? लड़का : नही बिल्कुल नही। लड़की : क्या तुम मुझस read more >>
Join Us: