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तीसरी बहू..🤱

AJAY ANAND 08 Apr 2023 कहानियाँ समाजिक तीसरी बहू, दुल्हन, विवाह का मंडप, लड़की की शादी। बड़े घर की बेटी, ससुराल बेटी का, बेटी की बिदाई 7775 0 Hindi :: हिंदी

तीसरी बहू🤱🧑‍🌾
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विवाह का मंडप लगा हुआ था उस मंडप के चारों ओर बहुत सारे लोग आपस में घेरे हुए खड़े थे।  कुछ लोग कुर्सियों पर बैठकर दुल्हन आने का इंतजार कर रहे थे। उसमें से कुछ बराती थे जो लड़के की तरफ से आए हुए थे और कई उससे ज्यादा ही लोग लड़की के तरफ से गांव वाले थे। 
जय प्रकाश बाबू अपनी बेटी संध्या की शादी में खर्च करने में कोई कमी नहीं की है। बैंड बाजा सहित बरातियों के खाने पीने की उत्तम व्यवस्था की थी उन्होंने। कोई सामान घट ना जाए अपने बेटे राहुल को बार-बार डांटे जा रहे थे। सभी सामान आ गया है ना और देखना कुछ घटे नहीं इज्जत का सवाल है , बेटा और तुम्हारे दोस्त सब किधर गए हैं कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा है । एक से एक सवाल जयप्रकाश बाबू अपने बेटे से कर रहे हैं। 

बस बाबू जी वे लोग आते ही होंगे , मैंने उन्हें आने के लिए कह दिया है । राहुल ने जवाब दिया। इतना कह कर राहुल बारातियों की सेवा करने में जुट गया।

दुल्हन को देखने के लिए सभी को बेसब्री से इंतजार हो रहा था और सभी आपस में बात कर रहे थे । खासकर जो दूल्हे के तरफ से आए हुए लोग थे । 

मोहन बाबू ने तो अपने बेटे विनय के लिए हूर की परी से भी ज्यादा खूबसूरत लड़की को ढूंढा है - रामबाबू धीरे से बोलते हुए चुप हो जाते हैं । 

वहीं पर बैठे हुए दूसरे बराती भी बोल पड़ा । 

हां - हां क्यों नहीं रामबाबू - अपने गांव में एक वही तो है जो सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा और तो और सबसे बड़ा पोस्ट पर भी। हम लोगों को भी मोहन बाबू पर गर्व होना चाहिए और उससे हमें शिक्षा भी लेनी चाहिए।

 उन्होंने कितनी मुश्किल से अपने तीन बेटों और दो बेटियों को पढ़ाया लिखाया और अच्छे घर में शादी की - सुंदर जी लंबी सांस लेते हुए रामबाबू की तरफ देखते हुए बोल रहे थे। क्या जमाना था उस वक्त जब मोहन बाबू के दादा हमारे लोगों के यहां मजदूरी करके घर परिवार को चलाया करते थे। वो दिन भी क्या थे ....... और आज हर चीज उनके पास है ।

रामबाबू मायूस आवाज में सुंदर बाबू की तरफ देखते हुए बोल पड़ा। 

सुंदर बाबू आकाश की तरफ देखते हुए रामबाबू को जबाव दिया - सब ऊपर वाले की मोह - माया है हम लोग तो उनकी कठपुतली हैं , उसकी मर्जी के बिना कहीं कुछ होता है, क्या ?????

दुल्हन के आते ही शोर-शराबे शुरू हो जाते हैं। सभी बराती-  गन दुल्हन को देखने के लिए आपस में धक्का-मुक्की करने लग जाते हैं । कुछ बराती कुर्सी पर चढ़कर देखने की कोशिश करने में जुटे हैं तो कुछ बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों को कंधे पर रखकर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं । 

गांव वाले खासकर ऐसे ही होते हैं । लड़की की शादी हो या लड़के के उसे देखने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं। 

गांव में जब लड़की की शादी होती है तो जब लड़के कार या मारुति से गांव पहुंचते हैं तो गांव की महिलाएं माथे पर साड़ी  लेकर के लड़के को देखने के लिए इंतजार करते रहती है और मजाक इस तरह करते हैं मानो वर्षों से उसे जानते आ रहे हो।

वही हाल इन बारातियों का हो रहा है , वे लोग यही सोच रहे हैं कि क्या पता कब दुल्हन को देखने का मौका मिले और आज जब मिला है तो इस मौके को क्यों गवांऊं और तो और घर जाकर अपने परिवार वालों को भी तो बताना है दुल्हन का रंग , कटिंग , खान - पान वगैरह - वगैरह किस तरह का है।

जयमाला होने के बाद सभी बराती गण खाने के लिए एक जगह एकत्रित हो जाते हैं और लड़की वाले उधर लड़की और लड़के को अग्नि के फेरों में शादी कराने के लिए तैयार रहते हैं।

ज्यादा काम तो लड़की वाले पर ही निर्भर रहता है बारातियों का सेवा सत्कार इस तरह करते हैं मानो बाराती अपने घर जाकर लड़की वाले की बदनामी ना कर दें।

 बंदोबस्त अच्छा नहीं था ठहरने की व्यवस्था बेकार था खाने के लिए बहुत देर तक इंतजार करना पड़ा। वगैरह-वगैरह।

मोहन बाबू के तीन बेटे और दो बेटियां हैं कुल मिलाकर उनके पांच संताने हैं और सभी शिक्षित।

और हो भी कैसे नहीं मोहन बाबू को यह अच्छा से ज्ञात है कि पढ़ाई ही जिंदगी को अच्छी बना सकती है पढ़ा लिखा इंसान ही कुछ सोच समझ सकता है । ऐसे लाइफ तो बेकार लोगों की भी गुजर जाती है लेकिन समझदारी तो पढ़े लिखे इंसान में ही होती है।

मोहन बाबू की तीसरी बहू घर आई। पूरा घर सजा सजा है। घर के सभी सदस्य हाथ में थाली लिए लिए हुए दुल्हन के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । दुल्हन के आते ही, थाली सजा हुआ दीपक से दुल्हन की आरती उतारी जाती है। कई रस्में अदा की जाती है। दुल्हन भी शरमाते हुए अपने दाएं पैर को चौखट के अंदर रखती है । 

सभी औरतें एक से बढ़कर एक गीत गाए जा रही है।
ढोलक और तबले की चोट से उनके गीतों में और भी जान आ गई है।

घर आते ही मुंह दिखाई की रस्म अदा की जा रही है एक एक कर सभी औरतें शगुन के कुछ पैसे भी दे रही है।

मोहन बाबू के घर पर रिश्तेदारों की भीड़ लगी है । नई नवेली दुल्हन को आए हुए दो दिन हो गए हैं । अभी तक वो किचन की ओर मुख नहीं किए हैं।

मोहन बाबू के घर में यह नियम है कि जिसकी शादी होती है उसकी पत्नी ही घर के सारे काम तब तक करती है जब तक दुसरे की शादी नहीं हो जाती। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

इसके पहले मोहन बाबू की दुसरी बहू घर के सारे काम काज करती थी। 

तीसरी बहू संध्या की परवरिश इसके पिता जय प्रकाश बाबू ने शहरों में की थी वह शहर में रहकर ही पढ़ाई पूरी की और m.a. की डिग्री हासिल की । उसकी इच्छा थी कि मेरी शादी शहर में हो और लड़का सरकारी जॉब करते हो और मैं भी कोई अच्छी कंपनी देखकर उसमें जॉब करूं।

लेकिन संध्या के पिता ने उसकी इच्छा को पूरा नहीं कर पाए क्योंकि एक तो दहेज की मांग शहर वाले लड़कों के लिए ज्यादा थे और उस पर जॉब होने के कारण और भी ज्यादा मांग वह दे नहीं पाए। कई लड़के संध्या को देखने आए पर बात पैसों की लेनदेन पर अटक जाती।

जयप्रकाश बाबू ने सोचा अगर ऐसे ही लड़के वाले लड़की देख कर चले जाएं और कुछ बात ना बने तो लड़की की शादी बड़ी मुश्किल से होगी , अतः उसने यह निश्चय किया कि लड़का गांव का ही हो, पढ़ा लिखा हो , जगह और जमीने ज्यादा हो, घर में किसी चीज की कमी ना हो।

संध्या की पढ़ाई लिखाई शहर में होने के कारण उसे खाना बनाना नहीं आता था। ससुराल के नियम के अनुसार खाना तो उसी को बनाना पड़ता और दो गायों को सुबह शाम नाद में भूसे डालना और दोपहर में नहाना यह सभी कामें तो छोटी बहू को ही करना पड़ता , कुछ दिन तक । उसके बाद सभी बहुओं को अपने अपने कामों का बंटवारा कर दिया जाता चुंकि परंपरा है तो निभानी ही पड़ेगी।

संध्या स्पष्ट रूप से कह दी मुझे खाना-वाना बनाना नहीं आता और मैं गाय और भैंसों को नहीं नहाने वाली । मैंने अपने मायके में कभी ऐसा नहीं किया।

मोहन बाबू ने कह दिया ससुराल का नियम तो नियम है तुम्हें तो यह सारे काम करनी ही पड़ेगी। मेरे दो बहुओं ने इतने दिनों तक घर को सांज सवार कर रखा। अब से तुम्हारी बारी है कुछ दिन का ही तो बात है । उसके बाद मैं स्वतः ही सभी को अपने-अपने कामों को सौंप दूंगा।

संध्या गुस्से से अपने कमरे की तरफ चली जाती है।
और अपने आप बुदबुदाते जा रही थी आने दो रमेश को आप लोगों की शिकायत ना कि तो कहना। अंदर से दरवाजे की कुण्डी लगा लेती है।

अपने मायके वालों को फॉन लगा रही है साथ ही साथ गुस्से से बोले जा रही है इन लोगों ने हमें समझ किया रखा है घर की नौकरानी। अपने मायके में कभी कुछ नहीं की , यहां क्या बर्तन मांजने काम करें और गाय - गौरू हमसे ना होगा।

संध्या की मम्मा कॉल को रिसीव करते ही संध्या गुस्से से आग-बबूला हो जाती है कितनी देर से फोन कर रही हुं मम्मा, कहां चली गई थी तुम।

बेटा, घर में ही थी आने में समय लगता है ना थोड़ा, और तुम इतनी गुस्से से क्यों बात कर रही है,सब खैरियत से तो है ना वहां, कोई तुम्हें परेशान तो नहीं कर रहा है ।

कुछ भी अच्छा नहीं है मम्मा यहां पर, सभी बोलते हैं , घर के सारे काम तुम्हें ही करना है नहीं करेंगी तो अपने घर चली जाओ। अपने बाप को बोलो ,  लें जाएं यहां से।

ऐसे बोलते हैं वहां के लोग, कैसे विचार है उन लोगों के , संध्या की मम्मा बोल पड़ी।

और भी बहुत कुछ बोलते हैं मुझसे बोला नहीं जाता। मुझे यहां नहीं रहना है ।

डैड को बोलो हमें यहां से ले जाए। नहीं तो मैं.......
इतना कहकर संध्या फोन को काट देती।

बेटी की ऐसी हालत देखकर संध्या की मां परेशान हो जाती है , वह अपने पति जय प्रकाश को कहती है - कैसा रिश्ता अपने जोड़ा है, मेरी बेटी जरा सा भी खुश नहीं हैं वहां पर।जाते ही घर का सारा काम करना पड़ रहा है। दो - चार महीने क्या नहीं रुक सकते वो लोग। और देखो तो दामाद जी भी उन्हीं लोगों के पक्ष में है। मेरी बेटी की तो सुनने वाला कोई नहीं है वहां।

हाय .... राम मेरी बेटी कैसे रहेंगी वहां।

आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं झल्लाते हुए संध्या की मम्मा अपने पति जय प्रकाश से कहती है।

अरे भाग्यवान तुम कुछ बोलने देगी तभी तो कुछ बोलेंगे उस समय से तुम ही बोलें जा रही है , बोलें जा रही है......। जय प्रकाश बोल पड़ा।

पेपर टेबल पर रखते हुए जयप्रकाश बोला - 
अब बताओ हुआ क्या ? आखिर इतनी परेशान क्यों हो रही हो ? .. जय प्रकाश शांति स्वर में पूछा।

मेरी बेटी को गए हफ्ते भर भी नहीं हुए हैं , ससुराल वाले परेशान करने में लगे हुए हैं। 
मेरी बेटी क्या फ्री में ब्याही गई है, पैसे दिए हैं। और बर्तन गहने सो अलग।
सुनये जी, एक बार देख आईये , मेरा मन नहीं मान रहा है।
किस हाल में होगी हमारी बेटी ?

अच्छा ठीक है, राहुल को भेजकर मालूम करते हैं आखिर बात क्या है। तुम चिंता मत करो, ठीक हो जाएगा।
और उसके गए हुए भी तो एक हफ्ते ही हुआ है।

नहीं जी, आप एक बार होकर आइये। कहीं कुछ ऊंच नींच हो गया तो .........?
राहुल से नहीं सम्भाल पाएगा ।

ठीक है, मैं कुछ बंदोबस्त करता हूं - इतना कहकर जय प्रकाश कमरे की तरफ चल पड़ा।

सुबह होते ही जय प्रकाश अपने बेटी के घर की तरफ चल पड़ा। रास्ते में तो उसे मिठाई भी तो लेनी थी क्योंकि पहली बार अपने बेटी के घर जा रहे थे।

उसके घर के बाजू वाला ही मिठाई की दुकान खोला हुआ था। वहीं ठहर कर मिठाई लेने लगा।

कहो जय प्रकाश बाबू बहुत दिनों के बाद आए, घर के बाजू में रहते हो , मिलने की भी फुर्सत नहीं है, भाभी जी नहीं आने देती क्या ? ... मिठाई वाला घन श्याम साव मजाकिया लहजे में बोल पड़ा।

नहीं श्याम भाई, ऐसी बात नहीं है । जब से बिटिया की शादी हुई है , घर से कहीं जाने का मन नहीं करता।
और तो तुम्हें मालूम ही है मेरे नालायक बेटे को, मेरे नाक में दम कर रखा है।दिन भर आवारा गर्दी करते रहता है। पढ़ाई लिखाई से कुछ मतलब ही नहीं है उसका।

बदमाश दोस्तों के साथ........ जय प्रकाश बाबू के बातों को बीच में काटते हुए ही श्याम बोल पड़ा ।

कोई बात नहीं  प्रकाश ,  एक दिन उसमें भी सुधार आ जाएगा , हम दोनों भी बचपन में क्या कम शरारती थे ? याद है नई पड़ोसन जो मोहल्ले में आई थी हम दोनों छुप-छुपकर कितना देखा करते थे और आज कितने शरीफ बने बैठे हैं , कोई कहेगा पहले वाला घनश्याम साव है।

देखो तो हम दोनों में कितना सुधार आ गया है ....... घन श्याम साव हंसते हुए कहा।

मैं भी यही सोच रहा हूं कि राहुल की शादी कर देते हैं घर गृहस्ती का बोझ जब बढ़ेगा तो जिम्मेदारी अपने समझ में आ जाएगी। प्रकाश जी बोल पड़े।

सही बोले जय भाई , आइडिया कोई बुरा नहीं है - मुंह में पान चबाते हुए घनश्याम साव बोला।

ठीक है मैं निकलता हूं आधे घंटे बाद मेरी बस है राम राम भाई कहते हुए जयप्रकाश चल पड़ा।

समधी के घर पहुंचते ही जयप्रकाश का भव्य स्वागत हुआ मोहन बाबू बोल पड़ा क्यों समधी जी बिना बताए एकाएक मेरे घर पधारे हमसे कोई क्या भूल हो गई है एक कॉल तो कर देते ।

नहीं समधी जी ऐसी बात नहीं है बिटिया की बहुत याद आ रही थी तो जल्दबाजी में मैं घर से निकल पड़ा सिर्फ मेरी पत्नी ही जानती है कि मैं यहां आया हूं राहुल को तो पता भी नहीं है नहीं तो वह भी आने की जिद करता आखिर  उसकी बहन भी तो यहीं है।

संध्या अपने पिता के लिए एक गिलास ठंडे पानी लेकर आई , और देख कर चुपचाप चली गई। उसके इस व्यवहार से उसके पिता दुखी होते हैं सोचने लगते हैं कि बिना बात किए चली गई।

जयप्रकाश जी बोल पड़े - मैं सोच रहा था समधी जी , संध्या को कुछ दिन के लिए अपने घर ले जाना चाहता हूं, 

यह क्या बात हुई प्रकाश जी , अभी तो हफ्ते भर भी नहीं हुए हैं । संध्या भी तो मेरी बेटी है रहने दीजिए दो चार महीने , विनय को बोलकर  किसी दिन पहुंचवा देंगे , आखिर मेरा घर आपके घर से दूर ही कितना है।

दमाद जी किधर गए हैं आप कहे तो मैं ही उससे बात करूं।

वह अपनी बहन को पहुंचाने के लिए गया है कल तक में आ ही जाएगा। कल तक रुक जाइए । उसके आने के बाद चले जाइएगा , उससे बात भी हो जाएगी मोहन बाबू बोल दिया।

संध्या के पिता कुछ कहने ही वाले थे कि संध्या आकर बोल पड़ीं - हमें नहीं रहना और कुछ दिन , हमें अपने मायके जाना है और कितने दिनों तक बर्दाश्त करूं।

तुम यह क्या कह रही हो बेटी , हम लोगों ने ऐसा क्या कह दिया जो इतनी बड़ी बात कह दी ।

कहूं नहीं तो छोड़ दूं , मैं अपने मायके में कभी कुछ नहीं क्या और यहां आते ही घर के सारे काम मुझे ही करने पड़े। कभी आप लोगों  ने सोचा मेरे उपर क्या बीत रही है ??

ये तो घर के कायदे कानून थे बेटी , जो वर्षों से चली आ रही है , और मेरे सभी बहुओं ने भी तो सारे काम किए उसने तो कभी इंकार नहीं किया और कभी इस तरह से बात नहीं की।

वो सब के सब अनपढ़ थे , मैं पढ़ी लिखी हूं , मुझसे यह काम नहीं होगा - संध्या गुस्से में बोले जा रही थी।

मोहन बाबू आपसी मतभेद बढ़ता देख , प्रकाश जी से बोले - प्रकाश जी आप अपनी बेटी को कुछ दिन के लिए साथ ले जाइए , कुछ दिन अपने मायके में रहेगी तो मन हल्का हो जाएगा।

पर दामाद जी क्या कहेंगे - प्रकाश बाबू दुःख जाहिर करते हुए कहा।

उसकी चिंता आप मत कीजिए , उसे मैं समझा दूंगा। आप संध्या बेटी को साथ लेकर जाइए - मोहन बाबू सांत्वाना देते हुए प्रकाश जी से कहा।

संध्या अपने घर आते ही मां से लिपट कर रोने लगी और अपने ससुराल की ढ़ेर सारे शिकायतें की गठरी खोल कर रख दी।

हाय तौबा मेरे फूल जैसी बेटी पर उन लोगों ने इतना जुल्म किया । उसकी ये मजाल , थाने में मैं उसकी रपट ना लिखा दूं तो कहना।

अब रहने भी दो , बात को क्यों आगे बढ़ा रही हो ।अब बेटी भी तुम्हारे पास आ गई , फिर क्यों इतना उछल रही हो - संध्या के पिता डांटते हुए संध्या के मां से बोले।

आप तो हम दोनों के बीच पड़िए ही मत , मैं जानती हूं कि मुझे क्या करना है - संध्या की मां गुस्से से प्रकाश जी से बोली।

संध्या भी अपने मां का ही पक्ष लेकर बोल रही थी।

ठीक है, तुम लोगों की जो मर्जी हो करो , लेकिन एक बात का ध्यान रखना जितना बात को आगे बढ़ाएगी उतनी ही बात ज्यादा बिगड़ेगी -  गुस्से से बोलते हुए प्रकाश जी चलें गए ।


अजय आनंद, सुल्तानगंज, भागलपुर, बिहार
वाट्स एप 8309024238

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