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बड़े नादां हो सनम

Kishor Kumar Bhardwaj 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत सनम 14677 0 Hindi :: हिंदी

बड़े नादां हो सनम, माहताब मांगते हो //
अंधे की आंखों से, इक खा़ब मांगते हो //

फुलों के शहरों से, खुशबु बेच आने पर //
तुम तो बिन कांटे की, गुलाब मांगते हो //

क्यों करते रहते हो,मजबुर इस तरह से //
रेगिस्तान भी आ'कर, तालाब मांगते हो //

मै जानता हूँ कारण, हमदर्दी का शायद //
फकिर से भी तोहफा, नायाब मांगते हो //

अपनी वकालत का, तंज' मत बरपाओ //
अनपढ़ के घर से तुम,क़िताब मांगते हो //

नादान हो बिलकुल, या फिर दिल्लगी है //
अमावस की रात में,आफ़ताब मांगते हो //

चेहरे पर चेहरा लगाकर, होते हो रूबरू //
मगर दुसरों को कैसे, बेनक़ाब मांगते हो //

शोर-गुल हुआ जब, फ़कीरी का आलम //
मुफ़लिसी मे बादशाही,रुआब मांगते हो //

आखिर किस बात पर, दुश्मनी है रब से //
मंदिर के दहलीज देख, शराब मांगते हो //

मै अपने पे ठीक हूँ,अब तुम अपना जानो//
मुझसे किस बात का, हिसाब मांगते हो // 😊

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