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कविता = ( भीड़ )

Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 91922 0 Hindi :: हिंदी

#माननीयश्रीअटलबिहारीवाजपेई
माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी के सुशासन दिवस पर उनके चरण कमलों में समर्पित मेरी यह रचना
कविता = ( भीड़ )

भीड़ से कर अलग खुद को !
दूसरों से कर जुदा खुद को !!
भीड़ का हिस्सा बना तो क्या !
भीड़ के पीछे चला तो क्या !!
चल अकेला हो क़ाफ़िला !
ऐसा कर खुद को !!
भीड़ से कर अलग खुद को !
दूसरों से कर जुदा खुद को !!

पेट से जो शुरू किया !
पेट तक ही रह जाएगा !!
आवागमन का यह चक्र !
पार न कर पाएगा !!
मीट कर भी न हो ख़त्म !
ऐसा कर खुद को !!
भीड़ से कर अलग खुद को !
दूसरों से कर जुदा खुद को !!

दूसरों में खुद को ढ़ाला तो क्या !
उनके लिखे को अपना माना तो क्या !!
ठोकरों से जला शमा !
रास्ता हो तेरा नया !!
लिखें तुझको पढ़ें तुझको !
ऐसा कर खुद को !!
भीड़ से कर अलग खुद को !
दूसरों से कर जुदा खुद को !!

दिलों में अपनी धड़कन भर जा !
सबको अपने रंग में रंग जा !!
मौत को भी जीवन कर जा !
हर आँख को सागर कर जा !!
ख़ाक में तेरी तुझको ढूंढे !
ऐसा कर खुद को !!
भीड़ से कर अलग खुद को !
दूसरों से कर जुदा खुद को !!

‌‌      विपिन बंसल

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