आकाश अगम 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य #मुक्तक #दवायफ़ #ज़िन्दगी #तुम्हारी याद आती है #शेर #मेरे पापा #mere papa #davayaf #zism #raat #shayar #रात #नियम #आकाश अगम #कागज़ #चाँद #zindgi #थपेड़े #कर्तव्य #कोठे पर दवायफ़ #रागिनी #क़तआत #क्या फ़ायदा #मुहब्बत की शायरी 49722 0 Hindi :: हिंदी
सही अंदाज़ में जीवन मुझे जीना सिखाती है भटक जाऊँ अगर राहें तो राहें भी दिखाती है कभी इज़हार ना करता किसी के सामने ग़म का मैं चुप रहता हूँ पर कविता मेरी सबको बताती है।। दुखी इस ज़िन्दगानी के थपेड़े रोज़ खाता हूँ मेरे कर्तव्य जो कुछ हैं उन्हें दिल से निभाता हूँ मेरे इस दिल के कोठे पर दवायफ़ हैं कई लेकिन उन्हीं में एक ऐसी है जिसे सर पर बिठाता हूँ।। ज़ुबाँ जब रागिनी गाये तुम्हारी याद आती है किसी का स्पर्श हो जाये तुम्हारी याद आती है है रिश्ता कौन सा तुमसे मुझे मालूम तो ना है मग़र रिश्ते का नाम आये तुम्हारी याद आती है।। हवा क्यों चल रही इतनी मेरे पापा मेरे पापा न चाँद आया निशा बीती मेरे पापा मेरे पापा मुझे मालूम उस तारे पे जा बैठे हो तुम छुप कर चले आओ न पूछूँगी मेरे पापा मेरे पापा।। मेरी है गुफ़्तगू सीधी मैं तुमसे प्यार कर लूँगा ज़रूरत जब मुझे होगी मैं तुमसे प्यार कर लूँगा मुझे मालूम छुप छुप कर अगम से रोज़ मिलती हो जो सँग इक रात भी बीती मैं तुमसे प्यार कर लूँगा।। ज़हन में साँप पाला है चलो अच्छा किया तुमने हम्हीं पर जाल डाला है चलो अच्छा किया तुमने पड़ेगा ख़ूब पछताना तुम्हें अपने किये पर कल हमें घर से निकाला है चलो अच्छा किया तुमने।। ये छोड़ो क्या है अच्छा क्या बुरा तुम प्यार कर लो ना मुझे बस है तुम्हारा आसरा तुम प्यार कर लो ना दुकाँ पर जा, दिये पैसे, शराब आयी, नशा आया 'अगम' ये काम है झंझट भरा तुम प्यार कर लो ना।। हुई शैवाल उसके बाद कितने जीव हैं आये हम्हीं वानर, हम्हीं होमो, हम्हीं इंसान कहलाये समय का एक पहिया है निरन्तर घूमता अद्भुत कभी थे पेड़ तक सीमित, अभी हम चाँद घूम आये।। हमारे बिन तुम्हारे रूप की शमशीर कैसी है ज़रा देखें तुम्हारी आख़िरी तस्वीर कैसी है जिन्होंने की कृपा तब ही उभर पायी है सीने में वही अब पूँछने आये तुम्हारी पीर कैसी है।। सितारे टिमटिमाते हैं बताओ बात क्या करना ग़ज़ल हम गुनगुनाते हैं बताओ बात क्या करना हमारा दर्द ले कुछ लोग पहुँचे यार वे बोले कि लँगड़े लड़खड़ाते हैं बताओ बात क्या करना।। अधर तो नीर ही माँगे बताओ बात क्या करना शहादत वीर ही माँगे बताओ बात क्या करना नई क्या बात यदि उसने तुम्हारा हाथ था पकड़ा दुशासन चीर ही माँगे बताओ बात क्या करना।। तुम्हारे मालियों ने वन बहुत आबाद रक्खा हो ये हो सकता नहीं तुमने कभी बर्बाद रक्खा हो तुम्हारी लिस्ट है जो नायकों की बीच में शायद मेरा भी नाम आता है अगर कुछ याद रक्खा हो।। विचार मिलते नहीं किसी से न हम किसी को सुहा रहे हैं वो ज़िन्दगी को क्या जान पायेंगे सिर्फ़ ख़ुशियाँ लिखा रहे हैं न है सिसकना , न फूट रोना अनेक विद्वान राय देते मैं रोक लूँ आँसुओं को कैसे जिन्हें न उपदेश भा रहे हैं।। वक़्त भी मजबूर करता है बदलने के लिए लोगों की बातें ही काफ़ी हैं पिघलने के लिए दर्द होता है किसी को देख कर ख़ुशियों में अब है नहीं माचिस ज़रूरी आज जलने के लिए।। दिखे रस्ता नहीं दिल को किधर जाये हुई चाहत कि जीवन अब सुधर जाये लगे हम बाँधने धागे हथेली पर यही उम्मीद थी तक़दीर बँध जाये।। ज़ख्म दिल पर लगा है कहीं ना कहीं दर्द भी हो रहा है कहीं ना कहीं मैं तुम्हारी बुराई ही करता सदा तुमने ये भी कहा है कहीं ना कहीं।। छोड़ कर हम तुम्हें अब कहाँ जा रहे ना ही जी पा रहे ना ही मर पा रहे रात दिन दिल में केवल यही बात है सोचते सोचते दिन गुज़र जा रहे।। बात दिल की किसी को बतायी नहीं राह कोई मुझे भी दिखायी नहीं पूँछें बिन प्यार , कम उम्र, कैसे लिखो कवि की जननी है पीड़ा जुदाई नहीं।। वृद्ध के पास जा बैठ जाना नहीं वक़्त अपनों में जा कर बिताना नहीं बोल भी दो अगर बोलते हैं सभी ये नया है पुराना ज़माना नहीं।। झूँठ का नीर अब सब बहाने लगे लोग अब देख कर मुँह बनाने लगे जिनको सिखलायी गिनती कभी बैठ कर ग़लतियाँ वो हमारी गिनाने लगे।। रात में सिर्फ़ सोना ये कैसा नियम ख़ुद से ही हाथ धोना ये कैसा नियम मर गया वो मैं रोता हृदय से मग़र आँख से ही है रोना ये कैसा नियम।। घर में छोटा था सबसे, मैं पलता रहा बात करने को गलियों में चलता रहा कोई लेता नहीं मुझको गम्भीर था बस यही दर्द दिल में मचलता रहा।। वो लड़की ज़िस्म से प्यारी बहुत है ये उसकी याद तो भारी बहुत है सुबह जल्दी उठो, बाहर न जाओ तुम्हें तो यार बीमारी बहुत है।। न तुम घर से निकलो न हम चल पड़ेंगे अनायास कैसे दिये जल पड़ेंगे न कागज़ मिले , जब मिला तब कहा था बहुत पड़ लिया इसलिए कल पड़ेंगे।। नहीं है शक़्स तो फिर काली दाल कैसे हो तुम्हीं नहीं हो शहर में बवाल कैसे हो तुम्हीं ने काम दिया है मुझे बहुत सारा बताओ तुम कि तुम्हारा ख़याल कैसे हो।। जाने ज़हर कैसे अकेले पी रही मेरे बिना सबको दिखाने के लिए हँसती रही मेरे बिना ये सोच कर हैरान हूँ , पगली के दिल का हाल क्या हर एक पल मेरे लिए मरती रही मेरे बिना।। वादा किया इक बार तो वादा निभाना चाहिए ये शेर लगता है पुराना पर सुनाना चाहिए झूँठा लगे सबको बयाँ करने लगो जब दर्दे दिल ख़ुद को न सबके सामने इतना हँसाना चाहिए।। ज़िस्म पर ज़ख्म फोड़ कैसे लूँ ये फटी चादर ओढ़ कैसे लूँ कुछ न कुछ काम आ ही जाता है रास्ते आज मोड़ कैसे लूँ।। अब ये नज़रें झुकाने से क्या फ़ायदा अब मेरे पास आने से क्या फ़ायदा लोग तो छोड़ कर सब चले घर गए अब तुझे गुनगुनाने से क्या फ़ायदा।।