Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक 9701 0 Hindi :: हिंदी
⭐ कविता = ( खादी ) एक खुदा के हम सारे बंदे ! धर्म की आड़ में खुल गए धंधे !! खेल रहे हैं खेल यह गंदे ! अवाम में हो गए सारे नंगे !! कुर्बानियों से खिलवाड़ हुआ ! देश तभी दो - फाड़ हुआ !! धर्म तो बस बदनाम हुआ ! लाशों पर व्यापार हुआ !! खादी में घुस गए थे गुंडे ! हो न पाए वो हैं नंगे !! एक खुदा के हम सारे बंदे ! धर्म की आड़ में खुल गए धंधे !! धर्म को जिसने बदनाम किया ! उसको ही हमने सम्मान दिया !! जातिवाद के बन गए फंदे ! वोट बैंक के सारे धंधे !! अपने ही घर में बट गए बंदे ! ऐसे हैं इनके हथकंडे !! शहादत भी कैश करी ! खूब दबाकर ऐश करी !! अब रोज़गार हैं इनके मंदे ! कब दिन आएंगे इनके चंगे !! एक खुदा के हम सारे बंदे ! धर्म की आड़ में खुल गए धंधे !! देश की ख़ातिर जो चले गए ! वो लोग भी यारों ठगे गए !! जातिवाद की क्यों दुकान हुई ! धर्म से ही जब दो - फाड़ हुई !! भारत जोड़ो पर हैं निकले ! पहले दिल क्यों न पिंगले !! काम न आए उनके फंदे ! समझ में आ गए इनके धंधे !! इनके गले में इनके फंदे ! अपने पंगे में पड़ गए पंगे !! एक खुदा के हम सारे बंदे ! धर्म की आड़ में खुल गए धंधे !! कॉमन वेल्थ गेम करवाए सरेआम डाके डलवाए ! मल मल गंगा में अब यह नहाएं !! मंदिर जाएं मस्जिद जाएं ! अब तो पूरा जोर लगाएं !! कभी है टोपी कभी जनेऊ ! मदारी देखो खेल दिखाए !! मोहब्बत की दुकान खोलने ! अब यह हमारी बस्ती आए !! धंधे में जब पड़ गए मंदे ! अब बोले यह,हर हर गंगे !! एक खुदा के हम सारे बंदे ! धर्म की आड़ में खुल गए धंधे !! विपिन बंसल