Pooja Sankalp 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद 15996 0 Hindi :: हिंदी
देखो बैठ रही होलिका अग्नि की ज्वाला में, अपने भतीजे को अग्नि में हलाल करने को वह ठानी थी। उस बालक को राख करने की बुआ की मनमानी थी, भाई हिरण्याकश्यप की यही आज्ञा उसनेे मानी थी। बालक बच गया नारायण की शरण में, चुनरिया उड़ चली प्रहलाद के मुखड़े पे। शक्ति मान चुनरिया ने उस बच्चे के साथ न अहित करने को ठानी थी, नारायण की आज्ञा उसनेे हृदय से मानी थी। रो पड़ा हिरण्यकश्यप बहन की मृत देह देख, पहचान न सका वो अपने पुत्र के रक्षक को। सत्य की जय हुई,असत्य की हुई हार, इसलिए यह होलिका अग्नि की ज्वाला में हुई राख।।